Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ४३ :
वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचचार् •
[सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग]

शंका:–द्रव्य पोतानी पर्यायने करतुं नथी एटले शुं?
समाधान:–जो के पर्यायनो कर्ता कोई अन्य नथी पण स्वद्रव्य पोते ज परिणमतुं थकुं
पोतानी पर्यायने करे छे–पोते ज ते पर्यायरूपे रचाय छे.–पण द्रव्य–
पर्यायस्वरूप एक ज वस्तु छे, तेमां आ कर्ता ने आ कार्य–एवा भेद शा
माटे पाडवा? ज्यां द्रव्य ने पर्याय अभेदपणे एकस्वरूप छे, त्यां द्रव्य
पर्यायने करे छे–एवो भेद रहेतो नथी. आवी अभेदद्रष्टिथी द्रव्य–पर्याय
वच्चे कर्ता–कर्मनो भेद पण नथी. बंनेनुं अनन्यपणुं ज छे.
‘जे द्रव्य ऊपजे जे गुणोथी तेथी जाण अनन्य ते,
ज्यम जगतमां कटकादि पर्यायोथी कनक अनन्य छे.
जीव–अजीवना परिणाम जे दर्शाविया सूत्रो महीं,
ते जीव अगर अजीव जाण अनन्य ते परिणामथी.’
(समयसार गा. ३०८, ३०९)
सत् वस्तुमां अंश–अंशीना भेदथी, के स्व–स्वामीना भेदथी, के कर्ता–कर्मना
भेदथी शुं प्रयोजन छे? आत्मानी शुद्धअनुभूतिमां एवा कोई भेद प्रकाशता नथी. जेना
उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यमां एक चैतन्यभाव ज प्रकाशे छे–एवा चैतन्यभावरूपे ज धर्मी
पोताने सतत अनुभवे छे.–आवा सर्वोपरि तत्त्वनी अनुभूति ए ज साध्यनी सिद्धि छे.
–‘
न खलु न खलु यस्मात् अन्यथा साध्यसिद्धि।’ द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदथी कांई
सिद्धि थती नथी.
प्रश्न:–धन्य कोण छे?
उत्तर:–सर्वज्ञस्वभावी आत्माने जेणे जाण्यो छे एवा ज्ञानी भगवंत धन्य छे.
कुंदकुंदस्वामी पण एवा जीवोने धन्यवाद आपतां कहे छे–