Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 53

background image
: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
* आकाशद्रव्य–सर्वव्यापक, जेनी अनंततानो क््यांय पार नहि, तेनो स्वीकार जे ज्ञान
करे ते ज्ञानमां आत्माना अनंत सर्वज्ञस्वभावनो स्वीकार होय ज. सर्वज्ञस्वभावनी
सन्मुख थईने तेना स्वीकार वगर अनंतआकाशनो स्वीकार थई शकतो नथी.
* ए ज रीते अत्यंत सूक्ष्म एवुं एकप्रदेशी काळद्रव्य, ने तेनी पर्यायरूप एक
समय,–तेने पण सर्वज्ञ ज प्रत्यक्ष जाणे छे, एटले सर्वज्ञस्वभावना स्वीकार
वगर ते सूक्ष्म द्रव्योनो स्वीकार पण थई शकतो नथी.
* छए द्रव्योनो स्वभाव अतीन्द्रियज्ञाननो विषय छे. जे ज्ञान स्वसंवेदनवडे
अतीन्द्रिय थयुं, आनंदरूप थयुं, सम्यक्त्वसहित थयुं, ते ज ज्ञान ज्ञेयपदार्थोने
यथार्थ जाणी शके छे. ते ज्ञाननुं अपार माहात्म्य छे. पदार्थोना गंभीर स्वभावने
ज्ञान वगर कोण जाणे? ते ज्ञान पोते पण अनंतगुणना स्वादथी गंभीर छे.
* आकाशना एक ज प्रदेशमां अनंता पुद्गल–परमाणुओ रहे छतां ते प्रदेशना
अनंत भाग नथी पडता.
काळना एक ज समयमां, एक जीव के परमाणु अनेक प्रदेशोने ओळंगी
जाय–तेथी कांई ते समयना अनेक भाग पडता नथी. एक परमाणु एक ज समयमां
पांच प्रदेशोने ओळंगे छतां समयना पांच भाग नथी पडता. –ए तो परमाणुनो ज
एवो विशिष्ट गतिस्वभाव छे. जीव मोक्ष पामे त्यारे एक समयमां अहींथी लोकाग्रे
पहोंची जाय–एवो तेनो कोई गतिस्वभाव छे, पण तेथी कांई ‘समय’ना असंख्य
भाग कल्पी शकाता नथी. अहो, वस्तुना स्वभावो एवा छे के विकल्पो तेनो पार
नथी पामी शकता. वीतरागी ज्ञान ज तेनो पार पामे एवी ताकातवाळुं छे. ज्यां
गंभीर स्वभाव नक्की करवा जाय त्यां ज्ञान निर्विकल्प थई जाय छे.
* सर्वज्ञतानी एकपर्यायमां अनंतानंत सामर्थ्य छे. आकाशनी अनंतता पण जेनी
पासे साव नानी लागे छे, आकाशनी अनंतता वडे पण जेनी अनंततानुं माप
थई शकतुं नथी,–एवी गंभीरता ज्ञानस्वभावमां भरी छे, ने ‘आवो
ज्ञानस्वभाव हुं छुं’ एम ओळखतां ज ज्ञान निर्विकल्प थई जाय छे, अतीन्द्रिय
आनंदना वेदननी छाप तेने लागी जाय छे; ज्ञेयोने जाणवा छतां ते पोताना
चैतन्यना प्रशमरसमां मग्न रहे छे.
* अहा, एवो ज्ञानस्वभाव–ए पण एक ज्ञेय छे; ने बीजा अनंता ज्ञेयतत्त्वो छे.
आवा स्व–पर ज्ञेयस्वभावो तेने जाणतां तेमां क््यांय राग–द्वेष नथी रहेता पण
प्रशमभाव ज पुष्ट थाय छे. वाह रे वाह! वीतरागी