Atmadharma magazine - Ank 381
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : अषाढ : २५०१
जिनशासन! तारी बलिहारी छे, सर्वज्ञभगवंतोना मार्गनी शी वात! आवो मार्ग
दिगंबर संतोए टकावी राख्यो छे, ने जगतना जीवो उपर महान उपकार कर्यो छे.
* अरे जीव! तारा ज्ञाननुं स्वरूप अने सामर्थ्य तो जो! ए ज्ञानमां क््यांय राग–
द्वेष–विकल्पो समाय तेम नथी; ज्ञान तो राग–द्वेषथी जुदुं प्रशांतस्वरूपी छे.
अनंतानंत ज्ञेयोने जाणवा छतां क््यांय राग–द्वेष करे एवुं ज्ञाननुं स्वरूप नथी.
* जेम एक आकाशप्रदेशमां, खंड पड्या वगर अनंतानंत परमाणुओने एकसाथे
जग्या देवानी कोई अचिंत्य ताकात छे, तेम एक ज्ञानपर्यायमां, राग–द्वेष वगर
अनंतानंत ज्ञेयोने जाणी लेवानी अचिंत्य ताकात छे. ए ज्ञानमां केटली शांति!
अनंतगुणनी केटली गंभीरता एमां भरी छे! –एने जाणतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
* भाई, सर्वज्ञदेवनुं शासन पामीने आत्माने प्राप्त करवानी आ मोसम आवी छे.
जेम उद्यमी खेडुत वरसादनी मोसम चुके नहि तेम जिनप्रवचननी आ मधुर
वर्षामां तुं आत्माने साधवानुं चुकीश नहीं.
अहा, जुओ तो खरा, जीवना ज्ञाननी ताकात!
अनंता ज्ञेयोने जाणे छतां ते ज्ञानमां राग–द्वेषनो जराय थडकारो पण थतो नथी
ने पोताना समभावरूप स्वभावमां स्थिर रहे छे. अनंता विधविध ज्ञेयोनुं ज्ञान
एकसाथे थवा छतां ते ज्ञानमां एक विकल्प पण थतो नथी. विकल्प ए कांई ज्ञाननुं
कार्य नथी; ने विकल्पमां कांई ज्ञाननुं काम करवानी ताकात नथी.
क््यां ज्ञाननी अगाध ताकात! ने क््यां विकल्प! बंनेने अत्यंत जुदाई छे.
* विकल्प तो अचेतन जेवो छे,–ते नथी जाणतो स्वने के नथी जाणतो परने.
* ज्ञान तो स्व–पर बधाने विकल्प वगर जाणे, अने स्वसंवेदनमां चैतन्यनी
अनंतगुणोनी शांतिने वेदे–एवी तेनी ताकात छे.
आवुं ज्ञान ते ज आत्मानुं स्वरूप छे; ते ज्ञानस्वभावमां घणी गंभीरता छे,
अनंतगुणनो वीतरागीस्वाद ज्ञाननी अनुभूतिमां समायेलो छे. आवी ज्ञानअनुभूति
करवी ते ज जैनशासनमां भगवान तीर्थंकरोनुं फरमान छे; ज्ञानअनुभूति ते ज मोक्षनो
उपाय ने ते ज जैनधर्म.
आवी अनुभूतिस्वरूप जैनधर्म जयवंत हो.
आवी अनुभूति ते ज जैनधर्मनुं धर्मचक्र्र छे.
महावीर भगवाननुं धर्मचक्र जगतनुं कल्याण करो.