: अषाढ : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
• गंभीरस्वभावी ज्ञेयोने वीतरागीज्ञान ज जाणे छे;
विकल्पमां स्व के परने जाणवानी ताकात नथी. •
अनेकान्तस्वरूपी ज्ञेयपदार्थोनुं स्वरूप एवुं अगाध गंभीर
छे के जेने स्वसन्मुख अतीन्द्रिय ज्ञानपूर्वक ज जाणी शकाय छे. ते
ज्ञान महान आनंदने भोगवतुं थकुं जयवंत वर्ते छे. आवुं
आनंदमय ज्ञान भगवान वीरनाथना शासनमां ज पमाय छे, तेथी
सत्पुरुषो भगवानना उपकारने भूलता नथी.
* जगतना जीव–अजीव समस्त तत्त्वोमां महिमावंत तत्त्व कयुं?
आत्मतत्त्व सौथी महिमावंत छे केमके ज्ञान ने सुख आत्मतत्त्वमां ज छे, अन्य
तत्त्वोना अस्तित्वने पण ते ज जाणे छे.
* जगतमां आत्मा केटला छे?
जगतमां भिन्न भिन्न अनंतानंत आत्माओ छे.
* जगतमां संख्या अपेक्षाए सौथी वधु द्रव्यो कया छे?
पुद्गल–परमाणुओ अनंतानंत छे. जीवो करतां पण पुद्गलोनी संख्या
अनंतगुणी छे.
* क्षेत्र अपेक्षाए सौथी मोटुं द्रव्य कयुं छे?
आकाशद्रव्य सौथी मोटुं छे, सर्वव्यापी छे.
क्षेत्र अपेक्षाए सौथी नानां द्रव्यो कया छे?
काळद्रव्य अने परमाणुद्रव्य,–तेओ एक ज प्रदेशी छे, तेथी सौथी नानां छे.
* मध्यमक्षेत्री द्रव्य कयुं छे?
जीवद्रव्यना प्रदेशो असंख्य छे, तेथी ते मध्यमक्षेत्रवाळुं छे.
* जीव जेटला ज प्रदेशोवाळा बीजा कया द्रव्यो छे?
धर्मद्रव्य तथा अधर्मद्रव्य ए बंनेना प्रदेशो जीवना प्रदेश जेटला ज छे.
* संख्या अपेक्षाए सौथी ओछा द्रव्य कया छे?
आकाशद्रव्य एक ज छे,–सौथी मोटुं होवा छतां ते एक ज छे; धर्मद्रव्य तथा
अधर्मद्रव्य पण एकेक ज छे. काळद्रव्यो असंख्यात छे; जीवद्रव्यो अनंत छे;
पुद्गल द्रव्यो तेनाथी पण अनंतगुणा छे.