Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : ७ :
४६. जेम वीजळी पडे ने पर्वतना कटकेकटका थई जाय ने फरीने संधाय नहि, तेम
भेदज्ञानरूपी वीजळीना प्रहार वडे ज्ञानीने ज्ञान अने रागनी एकता तूटी ते
फरीने कदी संधावानी नथी.
४७. अहा, अंतरना अपूर्व पुरुषार्थथी भेदज्ञान करतां ज्यां पोताना अंतरमां ज
परमात्मानो भेटो थयो त्यां हवे पामर जेवा परभावो साथे संबंध कोण राखे?
रागथी जुदी ज्ञानधारा उल्लसी ते उल्लसी, हवे परमात्मपदने भेटये छूटको.
४८. जुओ तो खरा, आ स्वभावना साधकनुं जोर! पंचमकाळना मुनिराजे पण
क्षायिक जेवा अप्रतिहत धारावाही भेदज्ञाननी आराधना बतावी छे. आवा
ज्ञाननी अंतरमां वीरताथी कबुलात आववी जोईए.
४९. अरे, आवी चैतन्यअनुभूतिनो केटलो महिमा छे, ने एवो अनुभव करनार
धर्मात्मानी शी स्थिति छे! तेनी लोकोने खबर नथी. ए धर्मात्माए पोताना
आंगणे मोक्षना मांडवा नाख्या छे.
५०. –ए अनुभवीना अनुभवमां बारे अंगनो सार समाई गयो छे, बार अंगरूप
श्रुतसमुद्रमां रहेलुं श्रेष्ठ चैतन्यरत्न तेणे प्राप्त करी लीधुं छे; संसारनुं मूळ तेने
छेदाई गयुं छे.
५१. अविरति समकितीना अंतरमां पण भेदज्ञानना बळे क्षणे–क्षणे सिद्धपदनी
आराधना चाली रही छे. जेम मुनिवरो मोक्षना साधक छे तेम आ धर्मात्मा पण
मोक्षना साधक छे.
५२. जीवना परिणामना बंध अने मोक्ष एवा बे भाग पाडो तो सम्यक्त्वपरिणाम
ते मोक्षस्वरूप ज छे, तेमां जराय बंधन नथी; अने रागादि बंध भावो जरापण
मोक्षनुं कारण नथी.
५३. अरे जीव! एकवार तो ज्ञानना स्वाश्रये ऊभो था! अने भेदज्ञानरूपी वज्रवडे
एकवार तो ज्ञान अने राग वच्चेनी संधिने तोडी नांख–तने बहु मजा आवशे.
५४. अरे जीव! साचा भावथी आत्मानी लगनीमां लाग्यो रहे ने तेमां भंग न
पडवा दे तो छ महिनाथी पण ओछा वखतमां तने निर्मळ अनुभूति
(सम्यग्दर्शन) जरूर थई जशे. घणा जीवोने थयुं छे तेम तने पण थशे.
५५. भेदज्ञाननो तीव्र अभ्यास ते आत्मप्राप्तिनो उपाय छे. भेदज्ञानना अभ्यासथी
जरूर आत्मप्राप्ति थशे; –एक शरत, के बीजो बधो कोलाहल छोडीने... ’ (एटले
के आत्मानी एकनी ज लगनी लगाडीने...) अभ्यास करवो.