त्यां बीजा मुनिओ तेने अत्यंत वात्सल्यथी वैराग्यसंबोधन करीने शूरवीरता जगाडे छे
के अरे मुनिराज! अंतरमां जईने निर्विकल्परसनां पाणी पीओ! अंतरमां अतीन्द्रिय
आनंदना सागरमांथी अमृत पीओ....ने आ पाणीनी वृत्ति छोडो....अत्यारे समाधिनो
अवसर छे. अनंतवार दरिया भराय एटलां जळ पीधां...छतां तृषा न छीपी...माटे ए
पाणीने भूली जाओ....ने अंतरना निर्विकल्प अमृतनुं पान करो....आराधनामां शूरवीर
थईने निर्विकल्प आनंदमां लीन थाओ. अत्यारे तेनो अवसर छे.
ते मुनिराज पाणीनी वृत्ति तोडीने अतीन्द्रिय आनंदना निर्विकल्प अमृत पीए छे.
विवेकंअंजुलिंकृत्वा तत्पिबंति तपस्विनः
उपदेशरूपी बख्तर पहेरावे छे; तेनुं अद्भुत भावभीनुं वर्णन भगवतीआराधनाना
‘कवच’ अधिकारमां शिवकोटि आचार्यदेवे कर्युं छे. ते भावभीना प्रसंगनुं वर्णन वांचता
जाणे आराधक मुनिवरोनो समूह नजर सामे ज बेठो होय, ने मुनिराज आराधनाना
उपदेशनी कोई अखंड धारा वहेवडावी रह्या होय एवी ऊर्मिओ जागे छे, ने ए
आराधक साधु भगवंतो प्रत्ये हृदय नमी पडे छे; आराधना प्रत्ये अचिंत्य महिमा अने
बहुमान जागे छे. विशेष वर्णन माटे ‘शूरवीर साधक’ नामनुं पुस्तक वांचो