Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : श्रावण : २५०१
कोईवार ते मुनिने कदाच पाणी पीवानी जराक वृत्ति ऊठी जाय ने पाणीने याद करे...
त्यां बीजा मुनिओ तेने अत्यंत वात्सल्यथी वैराग्यसंबोधन करीने शूरवीरता जगाडे छे
के अरे मुनिराज! अंतरमां जईने निर्विकल्परसनां पाणी पीओ! अंतरमां अतीन्द्रिय
आनंदना सागरमांथी अमृत पीओ....ने आ पाणीनी वृत्ति छोडो....अत्यारे समाधिनो
अवसर छे. अनंतवार दरिया भराय एटलां जळ पीधां...छतां तृषा न छीपी...माटे ए
पाणीने भूली जाओ....ने अंतरना निर्विकल्प अमृतनुं पान करो....आराधनामां शूरवीर
थईने निर्विकल्प आनंदमां लीन थाओ. अत्यारे तेनो अवसर छे.
ते मुनिराज पाणीनी वृत्ति तोडीने अतीन्द्रिय आनंदना निर्विकल्प अमृत पीए छे.
निर्विकल्प–चैतन्यगूफामांथी झरता
निर्विकल्पसमुत्पन्नं ज्ञानमेव सुधारसम्
विवेकंअंजुलिंकृत्वा तत्पिबंति तपस्विनः
[समाधिमरणनी तैयारीवाळा क्षपकमुनिने रत्नत्रयनी अखंड आराधनामां
उत्साहित करवा, अने उपसर्ग–परिषहादिथी रक्षा करवा, बीजा मुनिराज वीतराग
उपदेशरूपी बख्तर पहेरावे छे; तेनुं अद्भुत भावभीनुं वर्णन भगवतीआराधनाना
‘कवच’ अधिकारमां शिवकोटि आचार्यदेवे कर्युं छे. ते भावभीना प्रसंगनुं वर्णन वांचता
जाणे आराधक मुनिवरोनो समूह नजर सामे ज बेठो होय, ने मुनिराज आराधनाना
उपदेशनी कोई अखंड धारा वहेवडावी रह्या होय एवी ऊर्मिओ जागे छे, ने ए
आराधक साधु भगवंतो प्रत्ये हृदय नमी पडे छे; आराधना प्रत्ये अचिंत्य महिमा अने
बहुमान जागे छे. विशेष वर्णन माटे ‘शूरवीर साधक’ नामनुं पुस्तक वांचो
]
राग–द्वेष टाळवानो उपाय शुं?
–के चैतन्यस्वरूपमां उपयोगने जोडवो ते ज राग–द्वेषने टाळवानो उपाय छे. आ