बताव्या छे ए तत्त्वनी गंभीरता लक्षमां लईने समजे तो पोतानुं ज्ञान एवुं सूक्ष्म
अने स्पष्ट थई जाय के पछी अन्यमतना कहेला कुतत्त्वो तेने साव तूच्छ लागे; तेमां
क््यांय ते भरमाई न जाय. क््यां सर्वज्ञना कहेला अतीन्द्रिय तत्त्वो, ने क््यां अन्यमतना
कहेलां कुतत्त्वो! सर्वज्ञना कहेला तत्त्वोनो निर्णय करीने जेणे श्रद्धा करी तेने जगतमां
बीजे क््यांय कोई कुमार्गमां महिमा आवे नहि; सर्वज्ञदेवे कहेलां तत्त्वो स्व–परनुं
भेदज्ञान करावी, रागथी पार चैतन्यस्वरूपनो अपार महिमा प्रसिद्ध करे छे–जे महिमाने
जाणतां स्वानुभवथी जीव महान आनंद पामे छे ने संसारनो अंत करीने ते मोक्षने
साधे छे.
रचेला समयसारादि परमागम अहीं परमागममंदिरमां कोतराई गया छे; तेमां
चैतन्यना अनुभवना गंभीर भावो भर्या छे.
आत्मानी अनुभूति करावे छे.
आत्मानी द्रष्टि वगर सम्यक्त्व थाय नहि.
नियमसर अमोने मळी जाय छे, तेमां आत्मज्ञान–केवळज्ञान विषे जे लेख आवे
छे ते घणा ज मननीय छे, जेना वांचनथी दरेकने आत्मजागृतीनुं बळ मळे छे.”
जाय.
१० थी १३) लखेल छे तेने बदले (पानुं ३५ थी ३९) वांचवुं.