Atmadharma magazine - Ank 382
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २५०१ आत्मधर्म : ३९ :
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अहा, सर्वज्ञतावडे प्रत्यक्ष सिद्ध थयेल परम सूक्ष्म अतीन्द्रियतत्त्वो जैनशासनमां
बताव्या छे ए तत्त्वनी गंभीरता लक्षमां लईने समजे तो पोतानुं ज्ञान एवुं सूक्ष्म
अने स्पष्ट थई जाय के पछी अन्यमतना कहेला कुतत्त्वो तेने साव तूच्छ लागे; तेमां
क््यांय ते भरमाई न जाय. क््यां सर्वज्ञना कहेला अतीन्द्रिय तत्त्वो, ने क््यां अन्यमतना
कहेलां कुतत्त्वो! सर्वज्ञना कहेला तत्त्वोनो निर्णय करीने जेणे श्रद्धा करी तेने जगतमां
बीजे क््यांय कोई कुमार्गमां महिमा आवे नहि; सर्वज्ञदेवे कहेलां तत्त्वो स्व–परनुं
भेदज्ञान करावी, रागथी पार चैतन्यस्वरूपनो अपार महिमा प्रसिद्ध करे छे–जे महिमाने
जाणतां स्वानुभवथी जीव महान आनंद पामे छे ने संसारनो अंत करीने ते मोक्षने
साधे छे.
वाह! भगवंतनो पंथ भवअंतनो उपाय छे.
* * *
* कुंदकुंदआचार्य तो भगवान हतां. आ जीव उपर तेमनो घणो उपकार छे. तेमणे
रचेला समयसारादि परमागम अहीं परमागममंदिरमां कोतराई गया छे; तेमां
चैतन्यना अनुभवना गंभीर भावो भर्या छे.
आत्म–अनुभूतिना निजवैभवमांथी नीकळेला ए भावो एकत्व–विभक्त
आत्मानी अनुभूति करावे छे.
* अनेकान्तमय आत्मवस्तुनी श्रद्धा ते सम्यक्त्व छे?
हा; अनेकान्तमय आत्मवस्तुनी श्रद्धा ते ज सम्यक्त्व छे. अनेकान्तस्वरूप
आत्मानी द्रष्टि वगर सम्यक्त्व थाय नहि.
* पांचवडाथी श्री अमरूभा दादभा लखे छे– “आत्मधर्म मासिक दरमहिने
नियमसर अमोने मळी जाय छे, तेमां आत्मज्ञान–केवळज्ञान विषे जे लेख आवे
छे ते घणा ज मननीय छे, जेना वांचनथी दरेकने आत्मजागृतीनुं बळ मळे छे.”
* जीवनना दिवसो जेटली झडपथी वीती रह्या छे, तेनां करतां वधु झडपथी
आत्महित करी लेवानुं जरूरी छे. –जेथी जीवनमां ते खरूं काम बाकी न रही
जाय.
* आ अंकमां १५ पाने छपायेल लेखना उपोद्घातमां षट्खंडागम भाग १ (पानुं
१० थी १३) लखेल छे तेने बदले (पानुं ३५ थी ३९) वांचवुं.