Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
चारित्र वगर मोक्ष थाय नहि–ए वात तद्न साची छे. –पण ते चारित्र कयुं? के
उपर कह्युं तेवुं वीतरागी. चैतन्यस्वरूपमां एकाग्रताथी ज वीतरागभावरूप चारित्र
थाय छे. –आवा चारित्रनुं स्वरूप ओळखीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान पछी परिणामनी
शुद्धताअनुसार द्रढचारित्र धारण करवुं. वधारे शक्ति न होय तो ओछुं चारित्र लेवुं पण
चारित्रमां शिथिलाचार न राखवो. द्रढ पालनपूर्वक तेमां आगळ ने आगळ वधाय तेम करवुं.
धर्मी–श्रावकने जोके मुनि जेवुं चारित्र नथी होतुं परंतु तेने भावना तो
मुनिपणानी होय छे. तेनी भावनापूर्वक ते हिंसादि पापोने नियमपूर्वक छोडीने
अहिंसादिक व्रतोनुं पालन करे छे. अने ते अहिंसा वगेरेनी पुष्टि माटे त्रण गुणव्रत
तथा चार शिक्षाव्रत पाळे छे.
दिग्व्रत, देशव्रत अने अनर्थदंड–परित्यागव्रत–ए त्रण गुणव्रतो छे केमके तेओ
व्रतना पालनमां गुण करनारां छे.
* दशे दिशा संबंधमां मर्यादा नक्की करीने तेनाथी बहारना क्षेत्रमां जीवनपर्यंत न
जवुं तेमज पत्र–व्यवहार वगेरे द्वारा पण तेनी साथे वेपार वगेरेनो संबंध न
राखवो तेनुं नाम दिग् (–दिशा) व्रत छे.
* दिग्व्रतमां जेटली छूट होय तेमांथी पण अमुक क्षेत्रमां जवानो अमुक समय सुधी
त्याग करवो ते देशावकाश–व्रत छे.
* वगर प्रयोजने पापनी प्रवृत्तिओ–जेवी के लडाईनी वातो, बीभत्स फिल्मो
जोवानुं, भूमि खोदवी, वगर मफतनुं धोधमार पाणी ढोळवुं, फूल–झाड तोडवा,
प्राणीओने दुःख थाय तेवी रमत रमवी, कोई लडता होय तेने उत्तेजन आपवुं,
के बीजानी निंदामां रस लेवो–एवा प्रकारनी अनर्थरूप पाप प्रवृत्तिनो त्याग ते
अनर्थदंड–परित्याग व्रत छे. (अनर्थदंड व्रत एम टूंकामां बोलाय छे, पण पूरुं नाम
‘अनर्थदंड–परित्याग’ छे. ए ज रीते ‘चोवियार’ टूंकामां कहेवाय छे खरेखर चौविध–
आहारनो त्याग ते प्रत्याख्यान छे. –एम दरेक भाव समजवा जरूरी छे.)
त्यार पछी, सामायिक, प्रौषधउपवास, भोगोपभोग–परिणाम अने
अतिथिसंविभाग (–मुनि वगेरेने आहार दाननी भावना) –ए चार शिक्षाव्रत छे,
तेना अभ्यास वडे श्रावक मुनिपणानी भावना पुष्ट करे छे. तेने दर्शनपडिमा अने
व्रतपडिमा उपरांत आगळ वधतां सामायिक पडिमा, प्रौषधउपवास, सचित्तत्याग,
रात्रिभोजनत्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, उद्ष्टि भोजनत्याग, अने
अनुमतित्याग–एम–कुल ११ पडिमा होय छे. जो के आमां रात्रिभोजनत्याग वगेरे
सदाचारो तो सामान्य गृहस्थोनेय होय छे पण पडिमावाळा श्रावकने ते बधुं अतिचार
रहित, प्रतिज्ञापूर्वक होय छे. श्रावकने वस्त्रधारण होय छे, परंतु मुनि थया पछी शरीर
पर कोई पण प्रकारनुं वस्त्रधारण रहेतुं नथी. माटे जैनमुनिने निर्ग्रंथ कहेवाय छे. आवी
दशा वगर मोक्ष थतो नथी.