आत्माने महान आनंद आपनारां त्रणरत्नो....एनो महिमा लोकोत्तर छे. आ रत्नत्रय
ए सर्वे मुमुक्षुओनो मनोरथ छे; ते रत्नत्रय लेवा माटे चक्रवर्तीओ छखंडना साम्राज्यने
छे. जीवने आ रत्नत्रयनी प्राप्ति ते जैनशासननो सार छे. ते ज जैनधर्म छे. वाह,
आवा सम्यक्रत्नत्रयना एक अंशनी प्राप्तिथी पण जीवनो बेडो पार छे.
विस्तार, अने तेनी ज प्राप्तिनो उपाय–जिनागममां भर्यो छे. आ रत्नत्रय एटले
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र; –ए त्रणेय राग वगरनां छे. सिद्धांतसूत्रोमां
तो तेमने ‘ज्ञाननुं परिणमन’ कहीने राग वगरनां बताव्यां ज छे, ने रत्नत्रय–
पूजनना पुस्तकमां पहेली ज पंक्तिमां तेमने त्रणेयने राग वगरनां बतावीने पछी ज
कुंदकुंदस्वामी कहे छे के हे भव्य! दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षपंथमां आत्माने जोड.
जिनभगवंतो दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्ग कहे छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज मोक्षमार्ग
छे, केमके तेओ आत्माश्रित होवाथी स्वद्रव्य छे. जे जीव पोताना चारित्रदर्शनज्ञानमां
स्थित छे ते स्वसमय छे–एम हे भव्य! तुं जाण...ने ए जाणीने तुं पण स्वसमय था.