Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 45

background image
: भादरवो : २५०१ आत्मधर्म : ९ :
[भगवान मल्लिनाथना जीवे पूर्वभवमां करेल रत्नत्रयव्रत–उपासना]
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यकचारित्र...जैनधर्मना सर्वोत्तम त्रणरत्नो....
आत्माने महान आनंद आपनारां त्रणरत्नो....एनो महिमा लोकोत्तर छे. आ रत्नत्रय
ए सर्वे मुमुक्षुओनो मनोरथ छे; ते रत्नत्रय लेवा माटे चक्रवर्तीओ छखंडना साम्राज्यने
तथा १४ रत्नोने पण अत्यंत सहेलाईथी छोडी दे छे; ईन्द्रो पण एने माटे तलसी रह्या
छे. जीवने आ रत्नत्रयनी प्राप्ति ते जैनशासननो सार छे. ते ज जैनधर्म छे. वाह,
आवा सम्यक्रत्नत्रयना एक अंशनी प्राप्तिथी पण जीवनो बेडो पार छे.
अहा, जे मूल्य वडे जीवने अनंतकाळनुं मोक्षसुख मळे ते रत्नत्रयनी शी वात!
समस्त जिनवाणीनो सार एक शब्दमां कहेवो होय तो, ते छे ‘रत्नत्रय’. तेनो ज
विस्तार, अने तेनी ज प्राप्तिनो उपाय–जिनागममां भर्यो छे. आ रत्नत्रय एटले
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र; –ए त्रणेय राग वगरनां छे. सिद्धांतसूत्रोमां
तो तेमने ‘ज्ञाननुं परिणमन’ कहीने राग वगरनां बताव्यां ज छे, ने रत्नत्रय–
पूजनना पुस्तकमां पहेली ज पंक्तिमां तेमने त्रणेयने राग वगरनां बतावीने पछी ज
तेना पूजननी शरूआत करी छे:–
सरधो जानो पालो भाई, तीनोंमें कर राग जुदाई।
सरधो जानो भावा लाई, तीनोंमें ही रागा नांई।
(जुओ, पं. टेकचंदजीकृत रत्नत्रयविधान पूजा)
वाह, वीतराग रत्नत्रय! जीवनी शोभा माटे तमारा समान सुंदर आभूषण
बीजुं कोई नथी. आवा रत्नत्रय वडे आत्माने आभूषित करवा माटे समयसारमां
कुंदकुंदस्वामी कहे छे के हे भव्य! दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षपंथमां आत्माने जोड.
जिनभगवंतो दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षमार्ग कहे छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज मोक्षमार्ग
छे, केमके तेओ आत्माश्रित होवाथी स्वद्रव्य छे. जे जीव पोताना चारित्रदर्शनज्ञानमां
स्थित छे ते स्वसमय छे–एम हे भव्य! तुं जाण...ने ए जाणीने तुं पण स्वसमय था.
आ जगतनी