: १० : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
बधी दुर्लभ वस्तुओमां रत्नत्रय सौथी दुर्लभ छे. रत्नत्रयधर्मनी आराधना नहि
करवाथी जीव दीर्घ संसारमां रखडयो. रत्नत्रयधर्मनी आराधना करनार जीव आराधक
छे, अने तेनी आराधनानुं फळ केवळज्ञान छे.
आवा रत्नत्रयनी आराधनामां, अने तेनी व्रतकथामां भगवान मल्लिनाथना
पूर्वभवनुं उदाहरण प्रसिद्ध छे; ते अहीं आप वांचशो.
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[तेमणे पूर्वभवमां करेली रत्नत्रयव्रत–उपासना]
मिथिलापुरीना महाराजा कुंभ अने महाराणी सुप्रभा, तेमना पुत्र मल्लिकुमार,
–के, जेओ आ भरतक्षेत्रना १९ मा तीर्थंकर थया, तेओ पूर्वभवमां विदेहक्षेत्रमां
वैश्रवण नामना राजा हता; त्यां तेमणे आठ अंग सहित सम्यग्दर्शन, आठ अंग सहित
सम्यग्ज्ञान, तथा तेर अंगसहित सम्यक्चारित्र–एवा रत्नत्रयधर्मनुं स्वरूप एक
मुनिराज पासेथी सांभळ्युं हतुं, ने मुनिराजना उपदेशअनुसार ते रत्नत्रयव्रतनुं
विधान करीने परम बहुमानथी तेनुं उद्यापन कर्युं हतुं; पछी पोते पण संसारथी विरक्त
थई, रत्नत्रयधर्म प्रगट करी, दर्शनविशुद्धिआदि १६ उत्तम भावनापूर्वक तीर्थंकरनामकर्म
बांधी, त्रीजा भवे मल्लिनाथ तीर्थंकर थईने मोक्षपुरीमां पधार्या, तेमनी आ कथा छे...ते
रत्नत्रय–धर्मना बहुमानपूर्वक तमे वांचो....सांभळो.
जंबुद्वीपना दक्षिण भागमां आ भरतक्षेत्रमां आपणे रहीए छीए; तेना पूर्व
भागमां पूर्व–विदेहक्षेत्र छे, त्यां वीतशोका नामनी एक सुंदर नगरी छे. मोक्षाभिलाषी
धर्मात्माओथी भरेली ते नगरीमां अनेक मुनिवरो विचरे छे. ऊंचा ऊंचा अनेक
जिनमंदिरो उपर धर्मध्वजा फरकी रही छे...ने फरफराट वडे जाणे के देवोने ते साद पाडी
रही छे के हे भाई देवो! देवलोकमां तमने मोक्ष न प्राप्त थतो होय तो ते प्राप्त करवा
अहीं आवो....आ नगरीमां केवळीभगवंतो सदाय विचरे छे. वीतरागी देव–शास्त्र–गुरु
सिवाय बीजी कोई प्रवृत्ति अहीं देखाती नथी...एक शुद्ध जैनधर्म ज अहीं निरंतर वर्ते छे.
तमने प्रश्न थशे के आवी सुंदर नगरीना राजा कोण हशे! –सुंदर नगरीना राजा
पण सुंदर ज होय ने! तीर्थंकर मल्लिनाथना आत्मा पोते पूर्वभवमां आ मनोहर
वीतशोका नगरीना राजा हता...तेमनुं नाम वैश्रवण. तेओ आत्माने जाणनारा हता, ने
तेमनुं चित्त सदा रत्नत्रयनी भावनामां लीन रहेतुं. एक वखत तेओ राजसभामां बेठा
हतां, त्यां उद्याननो माळी आनंदपूर्वक आवीने कहेवा लाग्यो–हे स्वामी! हुं एक उत्तम