Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २५०१ आत्मधर्म : १३ :
ज्ञान शोभे छे. सम्यग्ज्ञान ते अमृत समान छे, ते ज मोक्षमार्गी जीवनी आंख छे;
सम्यग्ज्ञानचक्षु वडे आखुं जगत जणाय छे, ने वस्तुस्वरूप ओळखीने मोक्षमार्ग सधाय
छे. तेनुं नित्य आराधन करो.
राजाए प्रसन्नतापूर्वक कह्युं: हे प्रभो! हवे सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानपूर्वक,
जेनुं पालन आपना जेवा वीतराग मुनिवरो करे छे एवा सम्यक्चारित्रनुं स्वरूप कृपा
करीने कहो.
चारित्रधारी मुनिराजे सम्यक्चारित्रनुं स्वरूप बतावतां कह्युं: हे राजन!
सांभळो! सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानपूर्वक शुद्धोपयोग वडे आत्मस्वरूपमां लीन थवुं–
चरवुं ते चारित्र छे. ते चारित्रमां राग नथी. मुनिओने आवा शुद्धभावरूप चारित्रनी
साथे, हिंसादि समस्त पापोनो अभाव, अने अहिंसादि महाव्रतोनुं पालन होय छे;
एटले व्यवहारथी चारित्रना १३ प्रकार छे: अहिंसा, सत्य, दत्त, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
(ए पांच महाव्रत), मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति (ए त्रण गुप्ति), ईर्या, भाषा,
एषणा, आदाननिक्षेपण अने प्रतिष्ठापन (ए पांच समिति). –सर्वसंगत्यागी निर्ग्रंथ
–मुनिवरोने रत्नत्रयनी शुद्धपरिणति सहित आवा तेर प्रकारना चारित्रनुं पालन होय
छे. –आ सम्यक्चारित्र साक्षात् मोक्षसुख देखारुं छे...एनो महिमा अपार छे.
हे भव्य! आ रीते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं स्वरूप बताव्युं; ते त्रणेने तुं
राग वगरनां जाण. ‘सरधो जानो भावा लाई, तीनोमें ही रागा नांही! ’ हे मुमुक्षु
जीवो! रत्नत्रयनो अचिंत्य महिमा जाणीने तेनाथी आत्माने अलंकृत करो.
सम्यग्दर्शनरूपी हारने तो गळे लगावो, सम्यग्ज्ञाननां कुंडळ कानमां पहेरो, ने
सम्यक्चारित्ररूपी मुगटने मस्तक उपर धारण करो. सिद्धांतनुं सर्वस्व आ रत्नत्रय छे,
रत्नत्रय ए ज जीवनुं साचुं जीवन छे. तेमां निश्चयरत्नत्रय शुद्धआत्माना ज आश्रये
होवाथी परम उत्तम छे, ने ते मोक्षनुं साक्षात् कारण छे; ध्यानमार्ग वडे तेनी प्राप्ति थाय
छे. माटे मुमुक्षु जीवोए अवश्य प्रयत्नपूर्वक तेनुं आराधन करवुं जोईए.
रत्नत्रयनो आवो सुंदर महिमा सांभळीने वैश्रवण राजाए कह्युं:– हे स्वामी!
आवा रत्नत्रय धारण करवानी मारी भावना छे, परंतु अत्यारे हुं असमर्थ छुं. अत्यारे
तो सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञाननी आराधनापूर्वक चारित्रनी भावना भावुं छुं. हे प्रभो!
ए रत्नत्रय प्रत्ये परमभक्ति–बहुमानपूर्वक ठाठमाठथी तेनी महान पूजा करवानी मारी
भावना छे, तो ते रत्नत्रयव्रतनुं विधान मने समजावो. तेना वडे हुं रत्नत्रयनी भक्ति
करीश, अने भविष्यमां रत्नत्रयनी साक्षात् आराधना करीने चारित्रपद अंगीकार
करीश.