: भादरवो : २५०१ आत्मधर्म : १७ :
उपासनानुं अलौकिक वर्णन समयसारमां छे. अहो, समयसारमां तो बहु गंभीरता छे.
मोक्षना मार्गरूप जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते त्रणेय शुद्ध चेतनारूप छे,
रागरूप नथी के देहनी क्रियारूप नथी. आवा रत्नत्रयरूप शुद्धचेतना ते आत्मानो धर्म
छे, आत्मानो स्वभाव छे. ‘चेतना’ ने रत्नत्रयधर्मनुं लक्षण कह्युं छे पण रागने लक्षण
नथी कह्युं; रागनो तो तेमां अभाव छे, एटले रत्नत्रयमां क्यांय राग न आवे;
रत्नत्रय राग वगरनां छे अने ते ज मोक्षनुं साधन छे. आवा राग वगरनां रत्नत्रय
ते ज महावीरप्रभुनो वीतरागमार्ग छे; ते मार्गे मोक्ष पमाय छे.
जुओ, मोक्षमार्गमां रत्नत्रयने राग वगरनां लीधा छे, ने तेने चेतनानो धर्म
कह्यो छे. व्यवहार रत्नत्रयमां जे रागनो भाग छे ते कांई चेतनानो धर्म नथी. राग ते
आत्मानो स्वभाव नथी पण बंधनो स्वभाव छे; ते तो कर्म बांधनार छे, ते कांई
जीवने कर्मथी छोडावनार नथी. अने चेतनारूप रत्नत्रयधर्म तो कर्मथी विवर्जित छे.
पूजा–दान वगेरेना शुभरागने भगवाने लौकिकधर्म कह्यो छे पण मोक्षना कारणरूप
परमार्थधर्म ते नथी; परमार्थधर्म तो राग वगरनो छे. आवा राग वगरना रत्नत्रयनी
आराधना ते महावीरप्रभुनो मार्ग छे, ते जैनशासन छे.
जैनशासनमां त्रणेकाळे धर्मनुं आवुं स्वरूप ओळखवुं. भरतमां ऐरवतमां के
विदेहक्षेत्रमां सदाय आवो चेतनालक्षणरूप आत्मधर्म छे, तेमां रत्नत्रय समाय छे ने ते
ज मोक्षमार्ग छे. आवा मार्गने ओळखीने चेतनाना अनुभवनी निरंतर भावना करवा
जेवी छे. ते ज अहिंसाधर्मनो मूळ पायो छे.
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उपयोगस्वरूपनी अनुभूति ए ज साचुं जीवन छे.
आयुकर्म वगर जीवी शकाय?
–हा, साचुं जीवन आयुकर्म वगर ज जीवी शकाय छे. अनंत सिद्धभगवंतो
आयु वगर एवुं जीवन जीवे छे. जीवना प्राण चैतन्य छे. (आत्मद्रव्यहेतुभूत
चैतन्यमात्र भावधारणलक्षणा जीवत्व शक्तिः।) चैतन्यमात्र भावने धारण करीने सदा
जीवे एवी आत्मानी जीवत्वशक्ति छे, एटले जीव सदा चैतन्य–जीवनथी जीवनारो छे,
आयुकर्मथी नहि.
जो आयुकर्मथी जीव जीवतो होत तो बधा सिद्धभगवंतो मरी जात.
आयुना अभावमां कांई जीवनो अभाव होतो नथी.