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अतीन्द्रिय आत्मानी रुचि नथी.
जाय छे के में घणो मोक्षमार्ग सेव्यो....हुं धर्ममां घणो आगळ वधी गयो. पण ते खरेखर
मोक्षमार्गमां आव्यो ज नथी, संसारमार्गमां ज ऊभो छे.
अंतरमां अपूर्वद्रष्टिना बळे अनंत संसार कापी नाख्यो छे, ने मोक्षना आराधक थई
गया छे.
पाळीए छीए, माटे अमे तो एनाथी घणा आगळ वधी गया! –एवा जीवने अहीं
पूज्यपादस्वामी कहे छे के अरे मूढ अज्ञानी! तारां व्रत–तप तो संसारनुं ज कारण छे;
तने चैतन्यनु्रं तो भान नथी ने विषयोनी भावना छूटी नथी, तारो संसार ज जराय
छूटयो नथी; ने धर्मात्माने अंतरमां चैतन्यभावनाथी अनंत संसार छूटी गयो छे. व्रत–
तप करवा छतां तुं तो संसारमार्गी छो ने ते धर्मात्माने व्रत–तप न होवा छतां ते
मोक्षमार्गी छे. छतां एने हलको मानीने, ने पोताने तेनाथी अधिक मानीने तुं मोक्षमार्ग
नी मोटी विराधना करी रह्यो छे.
बंधन अने स्वद्रव्याश्रित मुक्ति, आ टूंको सिद्धांत छे.
जीवस्वभावना आश्रये थती होवाथी जीव साथे अभेद थई. आ रीते शुद्ध पर्यायसहित
जीवतत्त्व ते स्वद्रव्य छे ने ते ज उपादेय छे. अशुद्धता ने अजीव ते बधा परद्रव्य छे ने ते
हेय छे. आम बे भाग पाडीने स्पष्ट समजाव्युं छे. तेमां उपादेयरूप स्वतत्त्वमां ज जे
आत्मबुद्धि करे छे ते तो अजीवथी–आस्रवथी ने बंधनथी च्यूत थईने मुक्ति पामे छे;