: भादरवो : २५०१ आत्मधर्म : २७ :
७. आस्रव–अनुप्रेक्षा
आ अधिकारमां सात गाथाद्वारा एम बताव्युं छे के
पुण्य के पापकर्मना आस्रवना हेतुभूत शुभ के अशुभ बधा
भावोथी भिन्न एवा आत्माना उपशमभावमां लीन थईने
मिथ्यात्व–कषायादि भावोने छोडवा, –ते ज आस्रवने
रोकवानो उपाय छे. –अने एम करवुं ते ज आस्रवअनुप्रेक्षानुं
फळ छे.
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८८. जीवप्रदेशोना कंपन–विशेषरूप मन–वचन–कायाना योग छे ते आस्रव छे; ते
आस्रव मोहना उदयथी सहित तेमज रहित–एम बे प्रकारनां होय छे.
८९. मोहना विपाकने वश जीवने जे परिणाम थाय छे तेने आस्रव जाणो; –ते
मिथ्यात्वादि अनेक प्रकारनां छे (अहीं योग सिवायना मिथ्यात्वादि भावोने ज
मुख्य आस्रव कह्या छे–एम जाणवुं; ते दशमागुणस्थान सुधी होय छे. पछीना
आस्रवो मोह वगरनां छे.)
९०. कर्म पुण्य अने पाप एवा बे प्रकारनुं छे, तेनुं कारण पण शुभ अने अशुभ
एम बे प्रकारनुं छे; मंदकषाय ते शुभ छे, ने तीव्रकषाय ते अशुभ छे.
९१. सर्वत्र बधा प्रत्ये प्रियवचन, दुर्वचन कहेनारा दुर्जन प्रत्ये पण क्षमा, तथा सर्वे
जीवोनां गुणनुं ग्रहण–ए मंदकषायी जीवोनां द्रष्टांत छे. (ते पुण्यआस्रवनुं
कारण छे.)
९२. पोतानी प्रशंसा, पूज्य पुरुषोनां पण दोषने जोवानी टेव, तथा कोई प्रत्ये
दीर्घकाळ सुधी वेरबुद्धि राखवी–ए तीव्रकषायी जीवोनां चिह्न छे. (ते
पापआस्रवनुं कारण छे.)
९३. ए प्रमाणे आस्रवनां कारणोने जाणीने पण, छोडवा योग्य एवा मिथ्यात्वादि
कषाय परिणामोने जे छोडतो नथी–तेनुं सर्वे आस्रवचिन्तन निरर्थक छे.
९४. आस्रवना कारणभूत एवा आ मिथ्यात्वादि मोहजनित भावोने जे हेयरूप जाणे
छे अने उपशमभावमां लीन थयो थको तेने छोडे छे, तेनी आस्रवअनुप्रेक्षा
सफळ छे.