Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
आस्रव पांचप्रकारना; चिंतवी तजे विकार;
ते पामे निजरूपने, तेने भावना सार.

आस्रव जीवनिबद्ध अधु्रव शरणहीन अनित्य छे,
ए दुःख दुःखफळ जाणीने एथी निवर्तन जीव करे.
–भगवत् कुंदकुंद
८. संवर–अनुप्रेक्षा
आ अधिकारनी सातगाथामां कहे छे के–संवर ते मोक्षना
हेतुरूप धर्म छे अने तेनी शरूआत सम्यक्त्वथी थाय छे.
सम्यक्त्वसहितना उत्तम चारित्रथी विशेष संवर थाय छे.
संवरना कारणरूप जे भावो छे ते बधा राग वगरनां छे एम
समजवुं. जे राग छे ते तो आस्रवनुं कारण छे. –आम ओळखीने
वीतरागभावरूप संवरने आदरवो.
* * *
९५. सम्यक्त्व, देशव्रत, महाव्रत, कषायोनो विजय, तेमज योगनो अभाव–ए
बधा संवरनां नामो छे.
९६. पांच गुप्ति, पांच समिति, दश धर्म, बारअनुप्रेक्षा तेमज परिसहजय तथा उत्कृष्ट
चारित्र–ए विशेषपणे संवरना हेतुओ छे.
९७. योगोनो निरोध ते गुप्ति छे; प्रमादनो त्याग ते समिति छे; दयाप्रधान धर्म छे,
अने
सम्यक्त्त्वोनुं चिन्तन ते अनुप्रेक्षा छे.
९८. अत्यंत रौद्र एवी क्षुधादिक पीडाने श्रमण–मुनिओ जे उपशमभावथी सहन करे
छे ते ज परीसहविजय छे.
९९. रागादि दोषोथी रहित थईने पोतानी आत्मस्वरूप वस्तुना सम्यक्ध्यानमां
लीनता थवी–तेने उत्तम चारित्र जाणो.
१००. आ प्रमाणे संवरना हेतुने विचारवा छतां तेने जे जीव आचरतो नथी ते
दुःखथी संतप्त थयो थको दीर्घकाळ सुधी संसारमां भ्रमण करे छे.