चारित्र धारे संग तजी, सो मुनि संवरधार.
जे आत्म ध्यातो, ज्ञानदर्शनमय, अनन्यमयी खरे,
बस अल्पकाळे कर्मथी प्रविमुक्त आत्माने वरे.
महात्मा केवा खुशी थता हशे? त्यारे महात्मा कहे छे के अरे
राजा! आ पग धोवाय एमां ते शो आनंद हतो? अमे ज्यारे
शास्त्रचर्चाना गूढ रहस्यो उकेलवा मथता होईए, ने तेना
रहस्यनो उकेल मळी जाय–ते वखते अमने जे आनंद थाय,
तेनी पासे आ पग धोवानी शी गणतरी छे?
आनाथी तेमने केवो आनंद थतो हशे? त्यारे ज्ञानी धर्मात्मा
कहे छे के अरे भाई! रागथी जुदा पडीने अमारो उपयोग
ज्यारे अंतरमां जोडाय, ते वखते निर्विकल्पदशामां आत्माना
जे आनंदनुं अमने वेदन थाय छे तेनी पासे जगत तो तरणां
जेवुं लागे छे. एनी पासे आ बहारनां मान–प्रशंसानी शी
गणतरी छे?