Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
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पर्युषणमां भादरवा सुद छठ्ठे उत्तममार्दव एटले वीतरागी निर्मानतानो बीजो
दिवस हतो. अहो, मुनिवरोना वीतरागचारित्रधर्मनी शी वात!! एवा उत्तम
मुनिवरोने विशेष शास्त्रज्ञान होय, महान तपस्वी होय, अनेक लब्धि प्रगटी होय–पण
तेओ मान करता नथी, निर्मानता राखे छे. जेने सर्वज्ञस्वभावनी महानतानी खबर
नथी ते ज अल्प जाणपणामां अभिमान करे छे. अरे, सर्वज्ञो अने बारअंगधारी
श्रुतकेवळीभगवंतो पासे तो मारुं आ ज्ञान घणुं अल्प छे; चैतन्यनो स्वभाव तो
सर्वज्ञपद प्रगटे तेवडो छे; तेमां अल्पज्ञाननो गर्व केवो? –एवा भावमां धर्मीजीव
निर्मद रहे छे. प्रतिकूळता के अनुकूळतामां ते पोताना उपशांतभावमां रहे छे, मान–
अपमानमां समभावे रहे छे. मान करता नथी तेम अपमानना प्रसंगमां खेदखिन्न पण
थई जता नथी.
अहा, आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव जेनी प्रतीतमां आव्यो छे ते जीव अल्पज्ञतानुं
गौरव केम करे? आ रीते आत्माना पूर्ण स्वभावनी महत्ता जाणीने तेनी आराधना
वडे वीतरागता अने निर्मानता थाय छे, तेनुं नाम उत्तम मार्दवधर्म छे. तेनी उपासना
ने पर्युषणा छे. आवा वीतरागधर्मनी उपासना मुख्यपणे मुनिओने होय छे, ने धर्मी
गृहस्थोने पण पोतानी भूमिकाअनुसार आवा धर्मनी उपासना होय छे. माटे
आचार्यदेव कहे छे के हे भव्यजीवो! तमे आवा दशधर्मोने परम भक्तिपूर्वक जाणीने
तेनी उपासना करो.
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पांचरत्नोद्वारा जैनशासनना सारभूत आत्मानुं परमार्थस्वरूप बतावीने कहे छे
के –निर्मळ द्रव्य–गुण–पर्यायरूप जे स्वतत्त्व, तेमां भेदनी चिंता छोडीने, अभेदद्रष्टिथी जे
एकाग्र थयो, ते भव्यजीव निजस्वरूपमां एकाग्रतावडे अल्पकाळमां मोक्षने पामे छे.
जुओ, शुद्धद्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप निजतत्त्व कह्युं; ते मोक्षनुं कारण छे. शुद्धतानुं कारण
थवानो स्वभाव तो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां छे; पण रागादि अशुद्धतानुं कारण थवानो
स्वभाव द्रव्य–गुणमां नथी, तेनुं कारण मात्र ते क्षणिकपर्यायमां ज छे, एटले ते
भूतार्थस्वभाव नथी; त्यारे शुद्धपर्यायनी पाछळ तो शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
कारणपणे उभा छे; तेना आश्रये शुद्धपर्याय थई; आवा शुद्ध द्रव्य गुण पर्यायथी
एकाकारस्वरूप निजतत्त्वमां एकाग्रता वडे मोक्षपद पमाय छे. (नियमसार–कळश १०९)
१४ गुणस्थानभेदो के १४ मार्गणास्थानभेदो ते कोई भेदोने सम्यग्दर्शन स्वीकारतुं नथी,
तेथी ते बधा भेदोने परभावो कह्या. अभेदरूप आत्मा ते परमतत्त्व छे, तेने ज
सम्यग्दर्शन स्वीकारे छे; ने तेना स्वीकारवामां जे शुद्धपर्याय वर्ते छे–ते मोक्षनुं कारण छे.