Atmadharma magazine - Ank 383
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 45

background image
: ६ : आत्मधर्म : भादरवो : २५०१
शुद्धकार्य थयुं. एटले, भूतार्थस्वभावनो स्वीकार करनारी पर्यायने पण अभेदपणे
भूतार्थ कहेवामां आवी छे. रागादिक ते अभूतार्थ छे, ने स्वभावमां वळेली ज्ञानपर्याय
ते भूतार्थ छे, तेने ‘भूतार्थधर्म’ पण कह्यो छे. अज्ञानी ते भूतार्थधर्मने जाणतो नथी.
अहा, पोतानी स्वानुभूतिथी में मारा आवा परम तत्त्वने जाण्युं छे, ने बीजा
बधा जीवोमां पण आवुं परमात्मतत्त्व छे–एम शुद्धनयथी में जाण्युं छे, –तो हवे हुं
सुबुद्धि तेमज कुबुद्धि जीवोमां भेद कया नयथी जाणुं? पर्यायना भेदे शुद्धस्वभावमां भेद
हुं केम जाणुं? वाह! जुओ आ शुद्धनयनी मस्ती! आवा शुद्धनयथी बधा जीवोने
परमात्मस्वरूपे जोनारो हुं तेमनामां भेद कया प्रकारे देखुं? व्यवहारथी जोतां पर्यायमां
भेद छे, पण शुद्धनयमां ते पर्यायना भेदने हुं केम देखुं? –वाह रे वाह! पोतानो परम
स्वभाव अनुभूतिमां लीधो त्यां बीजामां पण एकली पर्यायने नथी देखतो, तेमनामां
पण अष्टमहागुणथी शोभतो कारणसमयसार बिराजी रह्यो छे–एम धर्मी देखे छे. अने
तेओ ज्यारे पोताना कारणसमयसारने जाणशे त्यारे तेमने पण पर्यायमां शुद्धकार्य
प्रगट थशे.
हे जीव! तुं आवा पोताना स्वभावनी श्रद्धा तो जरूर कर! आ दग्ध
पंचमकाळमां पण एनी श्रद्धा थई शके छे. गा. १५४ मां आचार्यदेव कहे छे के–अरे, आ
दग्धकाळ (पंचमकाळ) रूप अकाळमां तुं हीन शक्तिवाळो हो तोपण निज
परमात्मतत्त्वना श्रद्धा–ज्ञान तो जरूर करजे. ‘आ काळमां मोक्ष नथी’ –एम कहीने
श्रद्धामां पण ढीलो थईश मा.
अशरीर ने अविनाश छे, निर्मळ अतीन्द्रिय शुद्ध छे,
ज्यम लोक अग्रे सिद्ध, ते रीते जाण सौ संसारीने. ४८.
अहा, जेवा सिद्धभगवान सिद्धालयमां बिराजमान छे तेवो ज परमार्थे हुं छुं–एम
स्वानुभूतिथी धर्मीजीवे परम स्वभावने जाण्यो छे, अने बधाय जीवो परमार्थे एवा ज
छे–एम पण शुद्धनयना बळथी ते जाणे छे. सिद्धालयमां जेवा गुणोथी सिद्धभगवंतो
अलंकृत छे–एवा ज गुणोथी बधाय जीवोनो स्वभाव अलंकृत छे. –अहो, जिनेश्वर
भगवाननुं शुद्धवचन बुद्धपुरुषोने आवो आत्मस्वभाव देखाडे छे. जिनवचनमां आवो
शुद्धस्वभाव प्रसिद्ध छे तेने हे भव्य! तुं जाण!