रागथी ज लाभ मानी ल्ये एटले तेमां उपादेयबुद्धि करे तो कांई तेना प्रसादथी
शुद्धात्मानी प्राप्ति न थाय, पण अज्ञान थाय. अहीं तो जेणे पहेलेथी पोताना
ज्ञानतत्त्वने समस्त परभावोथी जुदुं जाण्युं छे–अनुभव्युं छे ने हवे तेमां ज
एकाग्र थईने जे प्रशांत थवा तैयार थयो छे–एवा सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्माने
मुनिदशामां चारित्रनी शुद्धपरिणति साथे पंचाचार वगेरे केवो व्यवहार होय तेनी
ओळखाण करावी छे. तेनुं विस्तृत वर्णन आ प्रवचनसारना चारित्रअधिकारमां
अलौकिक रीते आचार्यदेवे कर्युं छे.
शुद्धात्मानी उपलब्धिने साधनारा महागुणवान आचार्यभगवान पासे जईने,
वंदन करे छे ने विनयपूर्वक प्रार्थना करे छे के–
मने अनुगृहीत करो.”