Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
वाह, जुओ तो खरा, जाणे साक्षात् मुनिदशाने अंगीकार करवानो
प्रसंग अत्यारे ज बनी रह्यो होय! कुंदकुंदस्वामी अत्यारे ज चारित्रदशा
अंगीकार करावी रह्या होय! एवुं भावभीनुं वर्णन छे. आ रीते, मुमुक्षु शिष्ये
प्रार्थना करीने मागेली ईष्ट मुनिदशा आचार्य भगवाने तेने आपीने
अनुगृहीत कर्यो....
पछी–
परनो न हुं, पर छे न मुज, मारुं नथी कंई पण जगे,
–ए रीत निश्चित ने जितेंद्रिय साहजिक–रूपधर बने. २०४.
हुं परनो नथी, पर पदार्थो मारां नथी; आ लोकमां मारुं कांई पण नथी,
परनी साथे मारे तत्त्वत: कांईपण संबंध नथी; हुं तो शुद्ध ज्ञानमात्र छुं.
छद्रव्यथी भरेला आ लोकमां मारा एक ज्ञानतत्त्व सिवाय बीजुं कांईपण मारुं
नथी.–आवा निश्चयवाळो ते जीव, पर साथेनो संबंध तोडीने एटले के ईन्द्रिय
अने मनने जीतीने,–तेना तरफथी उपयोग पाछो खेंचीने, जितेन्द्रिय थईने,
उपयोगने पोताना शुद्धात्मतत्त्वमां लीन करतो थको शुद्धात्माने उपलब्ध करे
छे.....अप्रमत्त थईने मुनिदशा प्रगट करे छे....आत्मद्रव्यनुं जेवुं सहज शुद्ध
स्वरूप छे तेवुं प्रगट करीने यथाजात–रूपधर बने छे.–आवी चारित्रदशा ते
मोक्षनी साधक छे.
नमस्कार हो ते चारित्रवंत मुनिभगवंतना चरणोमां.