Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ९ :
* वीतराग – विज्ञान – प्रश्नोत्तर *
(गतांकथी चालु)
५०. अज्ञानी पुण्य करीने स्वर्गे जाय तो ते सुखी छे?
ना; ते पण अनादिनी संसारनी चाल छे.
५१. तो मोक्षमार्गनी चाल कई छे?
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते मोक्षमार्गनी चाल छे.
५२. अहीं सम्यग्ज्ञानने कोनुं कार्य कह्युं छे?
सम्यग्ज्ञान ते सम्यग्दर्शननुं कार्य छे.
५३. सम्यग्ज्ञानने शुभरागनुं कार्य केम न कह्युं?
केमके राग वडे ते थतुं नथी. राग तो सम्यग्ज्ञानथी विरुद्ध जात छे.
५४. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण शुं छे?
आत्मानुं स्वरूप, जेम छे तेम श्रद्धवुं ते सम्यग्दर्शननुं लक्षण छे, ने
जेम छे तेम जाणवुं ते सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण छे.
५५. धर्मात्मानुं स्वसंवेदन केवुं छे?
अतीन्द्रिय, आनंदरूप छे, मोक्षनुं कारण छे.
५६. एवुं स्वसंवेदन कया गुणस्थाने थाय?
चोथा गुणस्थानथी ते शरू थई जाय छे.
५७. स्वसंवेदन थतां शुं थाय छे?
एकसाथे अनंतगुणमां निर्मळता थवा मांडे छे.
५८. सम्यग्ज्ञान शुं करे छे?
बधाने जाणीने, परभावोथी भिन्न आत्माने साधे छे.
५९. कोने देखवाथी सम्यग्दर्शन थाय?
आत्माना साचा स्वरूपने देखवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे.
६०. सम्यग्दर्शन–पर्याय क्यांथी थशे?
आत्मा पोते ते–रूपे परिणमशे.