: १० : आत्मधर्म : आसो : २५०१
६१. सम्यग्दर्शन केवुं छे?
ते आत्मानुं निजस्वरूप छे, जुदुं नथी.
६२. सम्यक्त्वादि कोई गुण रागमां छे?
–ना; एटले रागथी ते प्रगटे नहि.
६३. सम्यग्दर्शन थतां शुं थयुं?
अनंतगुणमय पोतानुं स्वघर जीवे देखी लीधुं.
६४. आ वात केवी रीते सांभळवी?
स्वभावनी होंशथी सांभळवी.
६५. आ समजतां शुं थाय छे?
मोक्ष तरफनुं परिणमन शरू थाय छे.
६६. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंदनी खाण क््यां छे?
जडमां नथी, रागमां नथी, आत्मामां छे.
६७. आत्मानुं शुद्धस्वरूप केवुं छे?
रागनी भेळसेळ वगरनुं, शुद्ध ज्ञानमय छे.
६८. सम्यग्द्रष्टि केवी वस्तुने जाणे छे?
सामान्य–विशेषस्वरूप जाणे छे.
६९. सम्यग्द्रष्टिने सन्देह होय?
आत्माना स्वरूपमां के अनुभवमां संदेह न होय.
७०. सम्यग्ज्ञाननी साथे शुं होय छे?
सम्यग्दर्शन, अतीन्द्रियसुख वगेरे होय छे.
७१. सम्यग्ज्ञानीने शुं नथी होतुं?
तेने शंकादि दोष के मरणादि भय होतां नथी.
७२. मारे अनंतभव हशे–एवी शंका कोने होय?
मिथ्याद्रष्टिने होय; सम्यग्द्रष्टिने न होय.
७३. ज्ञाननी साथे राग होय?
अल्प होई शके; अनंत भव थाय एवो राग न होय.
७४. ज्ञानना अस्तित्वमां रागनुं अस्तित्व छे?
ना; ज्ञान ज्ञानपणे छे, रागपणे नथी.