: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
७५. धर्मीने जे अल्पराग छे ते केवो छे?
ते पण बंधनुं ज कारण छे, मोक्षनुं नहि.
७६. ज्ञानमांथी शुं आवे?
ज्ञानमांथी मोक्ष आवे; ज्ञानमांथी संसार न आवे.
७७. अपूर्व सम्यग्ज्ञान शुं करे छे?
ते संसारचक्रने बंध करीने मोक्षचक्रने चालु करे छे.
७८. पुण्य करे पण आत्मज्ञान न करे तो शुं मळे?
एनाथी स्वर्ग मळे पण जन्म–मरणनो अंत न आवे.
७९. मोक्षने साधवा माटेनी कळा कई छे?
सम्यग्ज्ञान ते मोक्षने साधवानी अपूर्व कळा छे.
८०. जन्म–मरणना दुःखने मटाडनारुं अमृत कयुं छे?
सम्यग्ज्ञान जन्म–मरण मटाडनार परमअमृत छे.
८१. वीतरागी भेदज्ञान क्यांसुधी भाववुं.
केवळज्ञान थाय त्यां सुधी भेदज्ञानने भाववुं.
८२. सम्यक्दर्शन–ज्ञानने कारण–कार्यपणुं कई रीते छे?
सहचर अपेक्षाए कारण–कार्यपणुं छे.
८३. रागादिने सम्यग्ज्ञाननुं कारण केम न कह्युं?
ते अशुद्ध छे; रागना अभावमां पण सम्यग्ज्ञान रहे छे, तेथी राग
तेनुं कारण नथी.
८४. जेम श्रद्धा–ज्ञानने कारण–कार्यपणानो व्यवहार छे, तेवो बीजो क््यो
दाखलो छे? –अतीन्द्रियज्ञान ते अतीन्द्रियसुखनुं कारण छे.
८५. आ कारण–कार्यमां समयभेद छे?........ना
८६. सम्यक्चारित्रनुं मूळ कारण कोण छे?
सम्यक् श्रद्धा–ज्ञानने चारित्रनुं मूळ कारण कह्युं छे, पण रागने
चारित्रनुं कारण नथी कह्युं.
८७. सम्यग्ज्ञान वगर जीवे शुं कर्युं?
कोटि जन्ममां तप तप्यो, पण शांति न पाम्यो.