: १२ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
८८. सम्यग्ज्ञान केवुं छे?
ते वीतराग–विज्ञान छे; त्रण लोकमां सार छे.
८९. जगतमां सुखनुं कारण कोण छे?
ज्ञान सिवाय बीजुं कोई जगतमां सुखनुं कारण नथी.
९०. पुण्यने सुखनुं कारण केम न कह्युं?
केमके तेना फळमां संयोग मळे छे, सुख नहीं.
वीतराग–विज्ञान वडे सुख मळे ने दुःख टळे.
९३. केवळज्ञान केवुं छे?
अद्भुत अचिंत्य महिमाथी भरेलुं छे ने महान अतीन्द्रियसुख सहित
छे.
९४. केवळज्ञानने ओळखतां जीवने शुं थाय छे?
अहा, केवळज्ञानने ओळखतां अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभावनी प्रतीत
सहित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने अतीन्द्रियसुखनुं वेदन थाय छे.
९५. चोथागुणस्थाननुं सम्यग्ज्ञान केवुं छे?
ते पण आनंदमय छे, तेनो पण अपूर्व महिमा छे.
९६. मति–श्रुतज्ञान पण क्यारे प्रत्यक्ष छे?
आत्मसन्मुख थईने स्वानुभूति वखते ते प्रत्यक्ष छे.
९७. एवुं प्रत्यक्ष, अतीन्द्रियज्ञान गृहस्थने थाय?
हा, धर्मी गृहस्थने एवुं ज्ञान थाय छे.
९८. सम्यग्दर्शन प्रगट थती वखते मति–श्रुतज्ञान केवां छे?
ते वखते मति–श्रुतज्ञान स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष छे.
९९. आत्माने जाणवामां ईन्द्रियनुं निमित्त छे?
ना; केमके आत्मा अतीन्द्रिय छे.
१००. आत्माने जाणवामां रागनुं निमित्त छे?
ना; रागथी जुदुं पडेलुं ज्ञान ज आत्माने जाणे छे.
१०१. मोक्षमार्गनी शरूआत कया ज्ञानथी थाय छे?