: आसो : २५०१ आत्मधर्म : १३ :
अतीन्द्रिय ज्ञानवडे ज मोक्षमार्ग शरू थाय छे.
१०२. आत्माने कई रीते जोवो?
आत्मा आंखथी न देखाय, ईन्द्रियातीत ज्ञानथी देखाय.
१०३. अंधारामां ‘आत्मा छे’ एम कई रीते जणाय?
‘आ अंधारुं छे’ एम जे जाणे छे ते आत्मा ज छे.
१०४. अंधकारने जाणनारो पोते आंधळो छे के देखतो?
अंधकारने जाणनार पोते आंधळो नथी, ते तो जागृत चैतन्यसत्ता छे.
१०५. आत्मानो साक्षात्कार क्यारे थाय?
तेनो अत्यंत रस अने अत्यंत महिमा आवे त्यारे.
१०६. पैसामांथी जीवने कदी सुख मळवानुं छे?
–ना, एमां सुख छे ज नहि पछी क्यांथी मळे?
१०७. आंखथी नजरे देखाय ते प्रत्यक्षज्ञान छे–ए बराबर छे?
ना; आंखथी देखाय ते परोक्ष; आंख वगर देखाय ते प्रत्यक्ष.
१०८. अंतरमां एकाग्र थईने अनुभव करतां शुं थाय छे?
अहा, अतीन्द्रिय आनंदरसनी धारा उल्लसे छे.
१०९. सिंहने आत्मानो अनुभव थाय?
हा; सिंह वाघ हाथी वानर सर्प हरण वगेरेने पण थाय.
महावीर प्रभुना आत्माए सिंहना भवमां आत्मअनुभव कर्यो हतो,
ने पारसनाथ प्रभुना जीवे हाथीना भवमां कर्यो हतो.
११०. दुनियामां आत्मज्ञानवाळा केटला माणसो हशे?
दुनियामां सम्यग्द्रष्टि–मनुष्योनी संख्या सात अबज जेटली छे.
१११. हाथी वगेरेने पूर्वभवनुं जातिस्मरण थाय?
हा, आत्मज्ञान थाय ने जातिस्मरणज्ञान पण थाय.
११२. एवुं ज्ञान क््या हाथीने थयुं हतुं?
त्रिलोकमंडन हाथीने, तेमज पारसनाथना जीवने थयुं हतुं.
११३. बधा साधक जीवोने कया ज्ञान होय?
सम्यक् मति–श्रुतज्ञान बधा साधकजीवोने नियमथी होय छे.