: १४ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
११४. सामाना मननी वात जाणी ल्ये तो?
–ए कांई आश्चर्यनी वात नथी; एवुं जाणपणुं (विभंगज्ञान)
अज्ञानीने पण होय छे; मोक्षमार्गमां तेनी किंमत नथी.
११५. मोक्षमार्गमां शेनी किमत छे?
स्वसंवेदनरूप वीतराग–विज्ञाननो परम महिमा छे; तेना वडे
मोक्षमार्ग सधाय छे; ते आनंदरसमां तरबोळ छे.
११६. केवळज्ञान कोने होय छे?
सिद्ध तथा अरिहंत भगवंतोने.
११७. केवळज्ञानी भगवंतो केटला छे?
अनंतानंत छे.
११८. परमअवधि, सर्वअवधि, विपुलमति–मन पर्यय कोने होय?
चरमशरीरी मुनिवरोने ज होय छे.
११९. परमात्मा थया तेओ पहेलां केवा हता?
तेओ पण पहेलांं बहिरात्मा हता.
१२०. पछी तेओ केवा थया?
तेओ ज अंतरात्मा थईने परमात्मा थया.
१२१. अंतरात्मपणुं अने परमात्मपणुं केवी रीते थयुं?
शुद्धोपयोग वडे; वीतराग–विज्ञान वडे.
१२२. ‘नमो अरिहंताणं’ मां शुं आववुं जोईए?
तेमां सर्वज्ञस्वभावी आत्मानी प्रतीत आववी जोईए.
१२३. अत्यारे मनुष्यलोकमां केटला अरिहंतभगवंतो छे?
सीमंधरादि आठलाख जेटला अरिहंतो विचरे छे.
१२४. केवळज्ञान शुभराग वडे थाय?
ना; शरूआतनुं सम्यग्ज्ञान पण शुभराग वडे नथी थतुं.
१२५. रागवडे ज्ञान थवानुं माने तो?
तो तेणे केवळ–ज्ञानने ओळख्युं नथी, अरिहंतने ओळख्या नथी;
तेणे राग अने ज्ञाननी भेळसेळ करी छे.