Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : १५ :
१२६. रागने केवळज्ञाननुं कारण माने तो?
तो केवळज्ञान पण रागवाळुं ठरे! केमके कारण अने कार्य एक जातना
होय.
१२७. केवळज्ञाननुं कारण कोण छे?
राग अने ज्ञाननी भिन्नतानो अनुभव करवो ते.
१२८. केवळज्ञाननो स्वीकार रागवडे थई शके?
ना; ज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी ज थाय.
१२९. सर्वज्ञनी साची ओळखाण क्यारे थई?
पोतामां भेदज्ञान थईने सम्यग्ज्ञान थयुं त्यारे.
१३०. ते सम्यग्ज्ञाननी साथे शुं छे!
तेनी साथे रागवगरनुं वीतरागी सुख छे.
१३१. धर्मात्माना मति–श्रुतज्ञान केवा छे?
ते केवळज्ञाननी जातना छे; रागथी जुदा छे.
१३२. सम्यग्ज्ञान केवुं छे?
केवळज्ञान साथे केलि करनारुं, मोक्षसुख देनारुं परमअमृत छे.
१३३. जीवन शेना माटे छे?
स्वहित साधवा माटे ज मुमुक्षुनुं जीवन छे.
१३४. अज्ञानी स्वर्गमां जवा छतां सुख केम न पाम्यो?
केमके, सुखनुं कारण ज्ञान तेनी पासे न हतुं.
१३५. ते जीव, पंचमहाव्रत तो पाळतो हतो?
पंचमहाव्रतनो राग ते कांई सुखनुं कारण नथी.
१३६. सुख माटे शुं करवुं?
सुख माटे बीजुं कांई शोध मा, सम्यग्ज्ञान कर.
१३७. रागमां, पुण्यमां के पुण्यफळमां सुख माने ते केवो छे?
तेने साचा ज्ञाननी के साचा सुखनी खबर नथी.
१३८. ज्ञानमां वधु सुख, ने विषयोमां थोडुं सुख–एम छे?
ना; सम्यग्ज्ञानमां सुख छे, बीजे क््यांय सुख नथी.
१३९. सम्यग्ज्ञानने अमृत केम कह्युं?
केमके अमर एवुं मोक्षपद तेनावडे पमाय छे.