आत्मिकशांतिनी चाहना होय तेने तेनी
प्राप्ति केम थाय? ए वात पूज्यपाद
स्वामीए ‘समाधितंत्र’मां बतावी छे.
स्वद्रव्य अने परद्रव्यने जे भिन्न जाणे छे, ते
जीव स्वद्रव्यना स्वभावनी अद्भुततामां
एवो तृप्त थई जाय छे के संयोगमांथी कांई
लेवानी बुद्धि तेने रहेती नथी; एटले सर्व
संयोगोमां ते निजस्वरूपथी संतुष्ट रहे छे,
तेथी तेने समाधिरूप अपूर्व आत्मशांति
होय छे. तेनुं वर्णन आ प्रवचनोमां आप
वांचशो.
बाह्य पदार्थो अनिष्ट छे माटे तेने छोडुं,–आ रीते बाह्य पदार्थोमां बे भाग
पाडीने तेने ग्रहण–त्याग करवा मांगे छे, तेमां एकलो राग–द्वेषनो ज
अभिप्राय छे एटले तेने असमाधि ज छे.