त्यागस्वरूप ज छे. आ रीते उपयोगनी निजस्वरूपमां सावधानी ते ज समाधि
छे, ते ज मोक्षमार्ग छे, तेमां ग्रहवायोग्यनुं ग्रहण अने छोडवायोग्यनो त्याग
थई जाय छे.
सुख भासे छे; परंतु ज्यां पोताना आत्मामां ज आत्मबुद्धि थई त्यां बीजा
शेमां विश्वास होय? के बीजे क्यां रति होय? अंतरात्माने पोताथी बाह्य
जगतना कोईपण पदार्थमां सुख भासतुं नथी एटले तेमां विश्वास के रति थतां
नथी; चैतन्य स्वरूपनो ज विश्वास करीने तेमां ज ते रमे छे.
माटे वेरानप्रदेश जेवा छे, तेमां क्यांय सुख के शांतिनो छांटोय नथी. ऊलटुं ते
तरफनी वृत्तिथी तो धगधगता तापनी जेम आकुळता थाय छे; अने चैतन्य–
प्रदेशमां रमतां परम शांति वेदाय छे. तो पछी आवा शांत रम्य लीलाछम
चैतन्यप्रदेशने छोडीने उज्जड वेरान एवा परद्रव्यमां कोण रमे?–तेने रम्य कोण
माने? धर्मी तो न ज माने. जेणे शांतिधाम एवो रम्य आत्मप्रदेश जोयो नथी
एवा मूढ जीवो ज परद्रव्यमां सुख कल्पीने तेने रम्य समजे छे.
एवुं भान छे तेथी परमां क्यांय सुखबुद्धिथी आसक्ति थती नथी. आ रीते
आत्मानी ज रति होवाथी ज्ञानी पोताना आत्मज्ञान सिवाय बीजुं कार्य अधिक
काळ धारण करता नथी–ए वात हवेनी (५० मी) गाथामां कहेशे.
छेतराय छे. आ शरीर ने आ अनुकूळ संयोगो जाणे सदाय आवाने आवा रह्या
करशे एम तेनो विश्वास करीने अज्ञानी तेमां सुख माने छे, पण ज्यां संयोगो
पलटी जाय ने प्रतिकूळता थई जाय त्यां जाणे के मारुं सुख चाल्युं गयुं! एम ते
छेतराय छे. पण अरे भाई! अनुकूळ संयोग वखते पण तेमां