संयोगनो शो विश्वास! तेमां क्यांय सुख देखातुं ज नथी. ज्ञानीनी नजर एक
आत्मा उपर ज ठरे छे, बीजे क्यांय जगतमां तेनी नजर ठरती नथी. राग
उपर पण तेनी द्रष्टि ठरती नथी. एक आतमराममां ज तेनी नजर ठरे छे.
अहो! मारो आत्मा एक ज मारा सुखनुं धाम छे, तेना सिवाय जगतनुं कोई
तत्त्व मारा सुखनुं धाम नथी, तो ते पर द्रव्योनो शो विश्वास? ने तेमां केवी
रति? मारो आत्मा ज मारुं आनंदनुं धाम छे.–एम ज्ञानीनी श्रद्धानो ने
रमणतानो विषय पोतानो आत्मा ज छे. तेओ पोताना स्वभावने ज सुखनो
सागर जाणीने तेनो विश्वास अने तेमां एकाग्रता करे छे, ने ए रीते पोताना
अतीन्द्रियसुखने भोगवे छे; ते छेतराता नथी.
–एम श्री पूज्यपाद स्वामीनो उपदेश छे.
ज्ञानीनां वहाण भवसागरथी तरी जाय छे ने मोक्षमां पहोंची जाय छे.
कार्यमां तेओ जोडाता नथी, आत्मानी भावना एक क्षण पण छूटती नथी.
ज्ञानचेतना जेनुं लक्षण छे ते ज धर्मीनुं कार्य छे, तेमां ज ते तत्पर छे.
अस्थिरताने लीधे प्रयोजनवश शरीर–वाणीनी कंईक चेष्टामां जोडाय छे पण
तेमां ते अतत्पर छे; तेने तेनी भावना नथी, तेमां तेओ ज्ञान–आनंद मानता
नथी, माटे तेनाथी ते अनासक्त ज छे.
नथी. राजपाटमां होय, स्त्रीओ होय, खाता–पीता होय, उपदेश देता होय, छतां
अंतरना चैतन्यसुखनी प्रीति आडे तेनी चेतना कोईपण बाह्यविषयोमां के
रागमां तत्पर थती नथी, जुदी ने जुदी ज रहे छे.