परिणमन वर्ते छे.–ते ज निश्चयथी परभावोनुं प्रत्याख्यान छे.
विशेषण तो आकाशने पण लागु पडे छे, तथा अनादिअनंतपणुं अतीन्द्रियपणुं
अने शुद्धपणुं तो परमाणुमां पण छे, पण सहजसुखपणुं तो आत्मामां ज छे.
आत्मानो आश्रय करवाथी ज सुखनी अनुभूति थाय छे.
ज्ञानपर्यायमां कोई परद्रव्य नथी, मारी ज्ञानपर्यायमां रागादि परभावो नथी,
मारी ज्ञानपर्यायमां मारो आत्मा ज छे. बीजा बधा मारी ज्ञानपर्यायथी बहार
प्रत्याख्यान थई गयुं.
उपर पडी छे, एटले शुभोपयोगथी पण ते उदासीन छे. आवा आत्माने
पोतानी समस्त पर्यायमां स्थापवो एटले के तेनो आश्रय करवो ते
जिनसिद्धांतनो सार छे. भाई! तारी पर्यायने आत्मानी सन्मुख कर...तने
सम्यग्ज्ञान थशे, अतीन्द्रिय सुख थशे.
पंचमभावनी भावनारूपे हुं परिणम्यो छुं, ते पंचमभावना आश्रये
सम्यग्दर्शननो उत्पाद थयो छे; मारी ते सम्यग्दर्शन–पर्यायमां मने मारा
आत्मानुं ज अवलंबन छे, बीजा कोईनुं अवलंबन नथी, माटे मारी
सम्यग्दर्शनपर्यायमां मारो आत्मा ज छे. अनादि अनंत–अमूर्त–अतीन्द्रिय–
शुद्ध–सुखस्वरूपी एवो हुं छुं–तेनी प्रतीतवडे हुं सहज सम्यग्दर्शनरूपे परिणम्यो
छुं. आवी शुद्धपर्यायरूपे परिणमेलो आत्मा ज जाणे छे के