Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 106

background image
: २६ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
तेमां धु्रव पण आवी गयुं; आ रीते उत्पाद–व्यय–ध्रुव त्रणे आत्मामां आवी गया.
सर्वज्ञदेवे जेवो कह्यो तेवा आत्माने धर्मी जीवे पोतानी
सम्यग्ज्ञानपर्यायमां ग्रहण कर्यो छे. तेना आश्रये तेने सहज शुद्धज्ञानचेतनारूप
परिणमन वर्ते छे.–ते ज निश्चयथी परभावोनुं प्रत्याख्यान छे.
अहीं आत्माना पांच विशेषण कह्यां– १–अनादिअनंत, २–अमूर्त, ३–
अतीन्द्रिय स्वभाववाळो, ४–शुद्ध अने ५–सहज सौख्यात्मक; तेमांथी प्रथमना चार
विशेषण तो आकाशने पण लागु पडे छे, तथा अनादिअनंतपणुं अतीन्द्रियपणुं
अने शुद्धपणुं तो परमाणुमां पण छे, पण सहजसुखपणुं तो आत्मामां ज छे.
आत्मानो आश्रय करवाथी ज सुखनी अनुभूति थाय छे.
* ज्ञानपर्यायमां आत्मा ज छे *
आ रीते आत्मानो आश्रय करीने सुखनी अतीन्द्रिय अनुभूतिरूपे
परिणमेला धर्मात्मा, सहज ज्ञानचेतनारूप थईने एम जाणे छे के मारी आ
ज्ञानपर्यायमां कोई परद्रव्य नथी, मारी ज्ञानपर्यायमां रागादि परभावो नथी,
मारी ज्ञानपर्यायमां मारो आत्मा ज छे. बीजा बधा मारी ज्ञानपर्यायथी बहार
छे. अनुभूतिमां आवा आत्मानुं ग्रहण थतां अन्य समस्त परभावोनुं
प्रत्याख्यान थई गयुं.
धर्मीना ज्ञानमां आत्मानुं ज अवलंबन छे. तेना अवलंबने थयेली
ज्ञानचेतना सहज शुद्ध छे. सम्यग्ज्ञाननी नजर पोताना शुद्ध सुखस्वरूप आत्मा
उपर पडी छे, एटले शुभोपयोगथी पण ते उदासीन छे. आवा आत्माने
पोतानी समस्त पर्यायमां स्थापवो एटले के तेनो आश्रय करवो ते
जिनसिद्धांतनो सार छे. भाई! तारी पर्यायने आत्मानी सन्मुख कर...तने
सम्यग्ज्ञान थशे, अतीन्द्रिय सुख थशे.
* सम्यग्दर्शन–विषये आत्मा ज छे *
वळी ते धर्मी जाणे छे के–खरेखर मारा सहज सम्यग्दर्शनना विषयमां
पण मारो शुद्ध आत्मा ज छे. पूजित परम पंचमगतिनी प्राप्तिना हेतुभूत
पंचमभावनी भावनारूपे हुं परिणम्यो छुं, ते पंचमभावना आश्रये
सम्यग्दर्शननो उत्पाद थयो छे; मारी ते सम्यग्दर्शन–पर्यायमां मने मारा
आत्मानुं ज अवलंबन छे, बीजा कोईनुं अवलंबन नथी, माटे मारी
सम्यग्दर्शनपर्यायमां मारो आत्मा ज छे. अनादि अनंत–अमूर्त–अतीन्द्रिय–
शुद्ध–सुखस्वरूपी एवो हुं छुं–तेनी प्रतीतवडे हुं सहज सम्यग्दर्शनरूपे परिणम्यो
छुं. आवी शुद्धपर्यायरूपे परिणमेलो आत्मा ज जाणे छे के