सम्यग्दर्शनपर्याय कोई निमित्तना, रागना के पर्यायना आश्रये परिणमी नथी;
तेथी मारी ते पर्यायमां राग के निमित्त नथी. जेना आश्रये ते पर्याय प्रगटी छे
ते आत्मा ज ते पर्यायमां छे. आम ज्ञान–दर्शन आदि समस्त पर्यायमां मारो
शुद्धआत्मा ज छे.–आवो निर्णय करनारने आत्माना आश्रये सम्यग्दर्शन–
ज्ञानादि निर्मळ पर्यायनो उत्पाद थयो छे, अशुद्धतानो व्यय थयो छे; आ रीते
आत्मामां एकसाथे उत्पाद–व्यय–ध्रुव वर्ते छे.
प्राप्ति छे–एवी पंचमगति एटले के मोक्षगति–सिद्धगति ते पण महिमावंत
होवाथी पूज्य छे. एवी पूज्य मोक्षगति केम पमाय? –के पंचमभावरूप जे
आत्मस्वभाव (पांच विशेषणथी उपर कह्यो) तेनी भावनाथी मोक्षपद पमाय
छे. सम्यग्दर्शन पण तेनी ज भावनाथी–तेनी ज सन्मुखताथी पमाय छे. एवा
आत्मानी सन्मुख थयेला धर्मात्मा जाणे छे के मारी सम्यग्दर्शन पर्यायमां मारो
आत्मा ज छे, आवो आत्मा ते ज भूतार्थ छे....ते भूतार्थना आश्रये ज
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे बधी निर्मळपर्यायो थाय छे. भूतार्थस्वभावना
आश्रये सम्यग्दर्शन छे–ए कुंदकुंदस्वामीना महान सूत्रमां (स. गा. ११मां)
जैनसिद्धांतनो सार भर्यो छे.
कुंदकुंदस्वामीनुं हृदय घणुं गंभीर छे! समयसारमां एमनुं हृदय भर्युं छे. एक
समयसारना गंभीर भावोने बराबर समजे तो बधा खुलासा थई जाय, ने
बीजा शास्त्रमां शोधवा जवुं पडे नहि.
मारो आत्मा ज रहेलो छे, ते पर्यायोमां राग के निमित्तो रहेलां नथी; राग के
निमित्तोना आश्रये ते पर्याय थयेली नथी. जे सहज अनादिअनंत तत्त्वना
आश्रये ते निर्मळपर्यायो थई छे ते परमतत्त्व ज मारी पर्यायोमां समीप–नीकट
वर्ते छे; ते दूर नथी