पुराणमां आवे छे. (ते कथा आ प्रमाणे: भगवान: ऋषभदेवना जीवे पूर्वे
वज्रजंघराजाना भवमां मुनिओने आहारदान कर्युं, त्यारपछी ते मुनिओने पूछे
छे के, हे नाथ! आ मतिवरमंत्री वगेरे जीवो मने मारा भाई समान वहाला
लागे छे, माटे आप प्रसन्न थईने तेनो पूर्वभव कहो. त्यारे मुनिराज कहे छे के
राजन्! आ मतिवरनो जीव पूर्वभवमां एकवार विदेहक्षेत्रमां एक पर्वत उपर
सिंह हतो, एकवार त्यांना राजा प्रीतिवर्धन ते पर्वतपर आव्या. अने त्यां
पिहितास्रव नामना मुनिने विधिपूर्वक आहारदान कर्युं. सिंहे (चक्रवर्तीभरतना
जीवे) ते देख्युं अने तेने जातिस्मरणज्ञान थयुं, तेथी ते सिंह अतिशय शांत थई
करीने, संन्यास करी रह्यो छे, तमारे तेनी सेवा करवी योग्य छे; ते सिंह
आगामी काळमां भरतक्षेत्रना प्रथम तीर्थंकरना पुत्र भरतचक्रवर्ती थवाना छे
अने ते ज भवे मोक्ष प्राप्त करवाना छे–एमां संदेह नथी.
योग्य सहायता करी. आ सिंह देव थनार छे एम समजीने मुनिराजे पण तेना
समाधिपूर्वक देह छोडीने ते सिंह बीजा स्वर्गमां देव थयो अने त्यांथी च्यवीने
वज्रजंघराजानो मंत्री–मतिवर थयो.)–आम धर्मात्मा प्रत्ये मुनिओने पण
वात्सल्यनो विकल्प ऊठे छे.
प्रमोद आवे के वाह, धर्मात्मानी दशा! तेओ मोक्षने साधी रह्या छे.
गुणवानने जोतां अंतरमां ईर्षा नथी आवती पण प्रमोद आवे छे, महिमा
आवे छे. जो