Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
अरे मुनिओने पण सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माओ प्रत्ये वात्सल्य आवे छे.
भरतचक्रवर्तीनो जीव पूर्वभवोमां एकवार सिंह हतो, ते वखते तेणे संन्यास
धारण करेल, त्यारे मुनिवरे एक राजाने तेनी सेवा करवानुं कह्युं हतुं. तेनी कथा
पुराणमां आवे छे. (ते कथा आ प्रमाणे: भगवान: ऋषभदेवना जीवे पूर्वे
वज्रजंघराजाना भवमां मुनिओने आहारदान कर्युं, त्यारपछी ते मुनिओने पूछे
छे के, हे नाथ! आ मतिवरमंत्री वगेरे जीवो मने मारा भाई समान वहाला
लागे छे, माटे आप प्रसन्न थईने तेनो पूर्वभव कहो. त्यारे मुनिराज कहे छे के
राजन्! आ मतिवरनो जीव पूर्वभवमां एकवार विदेहक्षेत्रमां एक पर्वत उपर
सिंह हतो, एकवार त्यांना राजा प्रीतिवर्धन ते पर्वतपर आव्या. अने त्यां
पिहितास्रव नामना मुनिने विधिपूर्वक आहारदान कर्युं. सिंहे (चक्रवर्तीभरतना
जीवे) ते देख्युं अने तेने जातिस्मरणज्ञान थयुं, तेथी ते सिंह अतिशय शांत थई
गयो, ने व्रत धारण करीने तेणे संन्यासमरण अंगीकार कर्युं.
मुनिराज पिहितास्रवे ते सिंहनो बधो वृतांत जाणी लीधो, अने राजा
प्रीतिवर्धनने कह्युं के हे राजा! आ पर्वत पर एक सिंह श्रावकनां व्रत धारण
करीने, संन्यास करी रह्यो छे, तमारे तेनी सेवा करवी योग्य छे; ते सिंह
आगामी काळमां भरतक्षेत्रना प्रथम तीर्थंकरना पुत्र भरतचक्रवर्ती थवाना छे
अने ते ज भवे मोक्ष प्राप्त करवाना छे–एमां संदेह नथी.
मुनिराजनां वचनो सांभळी राजाने भारे आश्चर्य थयुं. ने मुनिराजनी
साथे त्यां जईने ते सिंहने देख्यो; पछी राजाए तेनी सेवा तथा समाधिमां
योग्य सहायता करी. आ सिंह देव थनार छे एम समजीने मुनिराजे पण तेना
कानमां नमस्कारमंत्र संभळाव्यो. १८ दिवस सुधी आहारनो त्याग करीने
समाधिपूर्वक देह छोडीने ते सिंह बीजा स्वर्गमां देव थयो अने त्यांथी च्यवीने
वज्रजंघराजानो मंत्री–मतिवर थयो.)–आम धर्मात्मा प्रत्ये मुनिओने पण
वात्सल्यनो विकल्प ऊठे छे.
आ रीते धर्मात्मा प्रत्येनुं वात्सल्य ते सम्यग्द्रष्टिनुं चिह्न छे. जेने धर्म
प्रत्ये प्रमोद न आवे ने ईर्षा थाय–ते जीव सम्यक्त्वनो विराधक छे. धर्मीने तो
प्रमोद आवे के वाह, धर्मात्मानी दशा! तेओ मोक्षने साधी रह्या छे.
धर्मीनुं बीजुं चिह्न ए छे के पोताथी विशेष गुणवान होय तेना प्रत्ये
घणो विनय–सत्कार–आदर आवे; पोताने गुणनो प्रेम छे त्यां बीजा वधारे
गुणवानने जोतां अंतरमां ईर्षा नथी आवती पण प्रमोद आवे छे, महिमा
आवे छे. जो