रहेशुं; ने आ बधुं शुं थाय छे ते जोईशुं. अमने कोईनो डर नथी.
मने पण कोनो भय छे!–एम कहीने ते पण राम–लक्ष्मणनी साथे ज वंशस्थ
पर्वत तरफ जवा लागी.
मारी क््यांक पर्वत उपरथी पडी न जाय–एम विचारी, राम आगळ ने लक्ष्मण
पाछळ–बंने भाईओ खूब सावधानीथी सीताने पहाडना शिखर उपर लई
गया.
आत्मानुं ध्यान करी रह्या छे. दरिया जेवी गंभीर एमनी शांतमुद्रा छे. आवा
वीतराग मुनि भगवंतोने देखीने तेमने अत्यंत प्रसन्नता थई, ने
भक्तिभावथी स्तुति करवा लाग्या...राम–लक्ष्मण–सीताए एवी भावभीनी
स्तुति करी के पर्वत उपरना पशुओ पण ते सांभळीने मोहित थया, ने त्यां
आवीने शांतिथी बेसी गया. राम–लक्ष्मण–सीता त्यां ज रह्या. रात पडी....ने
असुरदेव उपद्रव करवा आवी पहोंच्यो; मोटा भयानक सर्पनुं रूप लईने
जीभना लबकारा करतो ते मुनिओना शरीरने वींटळाई वळ्यो. राम–लक्ष्मण
आ उपद्रवने असुरनी माया समजीने तेना उपर एकदम गुस्से थया. सीता तो
एनुं भयानक रूप देखीने भयथी रामने वींटळाई गई...रामे कह्युं–हे देवी! तुं
भय न कर.–सीताने धीरज आपीने बंने भाईओए मुनिओना शरीर उपरथी
सर्पने पकडीने दूर कर्या. (–बळदेव–वासुदेवना पुण्यप्रभाव पासे असुरदेवनी
विक्रियानुं जोर न चाल्युं.) सर्पोने दूर करीने राम–लक्ष्मण एवी अद्भुत स्तुति
करवा लाग्या के हे देव! आप तो जगतना रक्षक बंधु छो; आप मंगळ छो,
आपनुं शरण लेतां भव्यजीवोना भवनो उपद्रव दूर थई जाय छे ने आनंदमय
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे. अहो, आप जिनमार्गना प्रकाशक छो, सम्यक्त्वादि