Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
त्यारे राम हसीने कहे छे के रे सीता! तुं तो बहु बीकण छो. तारे
लोकोनी साथे जवुं होय तो तुं जा! अमे तो अहीं आ पर्वत उपर ज रात
रहेशुं; ने आ बधुं शुं थाय छे ते जोईशुं. अमने कोईनो डर नथी.
त्यारे सीताए पण कह्युं के हे नाथ! तमारी हठ दुर्निवार छे! तमे जशो
तो हुं पण साथे ज आवीश. आप अने लक्ष्मण जेवा वीर मारी साथे छो, पछी
मने पण कोनो भय छे!–एम कहीने ते पण राम–लक्ष्मणनी साथे ज वंशस्थ
पर्वत तरफ जवा लागी.
लोकोए तेमने त्यां न जवा घणुं समजाव्या, पण राम–लक्ष्मण तो
निर्भयपणे पर्वत उपर जवा लाग्या. सीता पण साथे चाली. सीता भयनी
मारी क््यांक पर्वत उपरथी पडी न जाय–एम विचारी, राम आगळ ने लक्ष्मण
पाछळ–बंने भाईओ खूब सावधानीथी सीताने पहाडना शिखर उपर लई
गया.
पहाड उपर जईने जोयुं त्यां तो अद्भुत आश्चर्यकारी द्रश्य देख्युं:
अहा! अत्यंत सुकोमळ बे युवान मुनिभगवंतो ऊभा ऊभा देहथी भिन्न
आत्मानुं ध्यान करी रह्या छे. दरिया जेवी गंभीर एमनी शांतमुद्रा छे. आवा
वीतराग मुनि भगवंतोने देखीने तेमने अत्यंत प्रसन्नता थई, ने
भक्तिभावथी स्तुति करवा लाग्या...राम–लक्ष्मण–सीताए एवी भावभीनी
स्तुति करी के पर्वत उपरना पशुओ पण ते सांभळीने मोहित थया, ने त्यां
आवीने शांतिथी बेसी गया. राम–लक्ष्मण–सीता त्यां ज रह्या. रात पडी....ने
असुरदेव उपद्रव करवा आवी पहोंच्यो; मोटा भयानक सर्पनुं रूप लईने
जीभना लबकारा करतो ते मुनिओना शरीरने वींटळाई वळ्‌यो. राम–लक्ष्मण
आ उपद्रवने असुरनी माया समजीने तेना उपर एकदम गुस्से थया. सीता तो
एनुं भयानक रूप देखीने भयथी रामने वींटळाई गई...रामे कह्युं–हे देवी! तुं
भय न कर.–सीताने धीरज आपीने बंने भाईओए मुनिओना शरीर उपरथी
सर्पने पकडीने दूर कर्या. (–बळदेव–वासुदेवना पुण्यप्रभाव पासे असुरदेवनी
विक्रियानुं जोर न चाल्युं.) सर्पोने दूर करीने राम–लक्ष्मण एवी अद्भुत स्तुति
करवा लाग्या के हे देव! आप तो जगतना रक्षक बंधु छो; आप मंगळ छो,
आपनुं शरण लेतां भव्यजीवोना भवनो उपद्रव दूर थई जाय छे ने आनंदमय
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थाय छे. अहो, आप जिनमार्गना प्रकाशक छो, सम्यक्त्वादि