रही छे. आत्मानी साधनामां आप मेरू जेवा निश्चल छो. तुच्छ असुरदेव त्रण
त्रण रातथी घोर उपद्रव करवा छतां आप ध्यानथी डगता नथी, के क्रोधनो
विकल्प पण करता नथी. धन्य आपनी वीतरागता! आपनी पासे एक नहि
पण अनेक लब्धिओ छे, आप धारो तो असुरदेवने क्षणमां भगाडी मूको...पण
बहारमां आपनुं लक्ष ज नथी; आप तो चैतन्यना ध्यान वडे केवळज्ञान
साधवामां ज तत्पर छो! –आम खूब ज स्तुति करी.
शरीरमांथी अग्निना भडका काढवा लाग्या...हाथमां तलवार–भाला लईने
बीवडाववा लाग्या; तेमना तोफानथी पर्वतनी शिलाओ कंपवा लागी. जाणे
मोटो धरतीकंप थयो. बहारमां आ बधुं बनी रह्युं छे त्यारे मुनिओ तो अंदर
शुक्लध्यानमां मग्न थईने, आत्माना अपार आनंदने अनुभवी रह्या छे,
बहारमां शुं थई रह्युं छे तेनी तेमने खबर नथी. सीता आ द्रश्य देखीने
भयभीत थई, त्यारे रामे तेने कह्युं–देवी! तुं भय न कर. तुं आ मुनिओना
चरणमां बेसी रहे, त्यां अमे आ दुष्ट असुरने भगाडीने आवीए छीए.–एम
कही सीताने मुनिना चरण समीप राखीने राम–लक्ष्मणे दुष्ट असुरदेवने पडकार
कर्यो. रामे धनुषनो एवो टंकार कर्यो के जाणे वज्रपात थयो. अग्निप्रभदेव
समजी गयो के आ तो कोई साधारण माणसो नथी पण महाप्रतापी बळदेव ने
वासुदेव छे; तेमनो दिव्य पुण्य प्रभाव देखीने ते अग्निप्रभदेव भागी गयो ने
तेनी बधी माया संकेलाई गई. उपसर्ग दूर थयो.
मंगलनाद थवा लाग्या. रात्रि पण प्रकाशथी झगझगी ऊठी. केवळज्ञानना प्रतापे
त्यां रात्रि दिवसनो भेद न रह्यो. अहा, पोतानी हाजरीमां ज ए मुनि–
भगवंतोने केवळज्ञान थतुं देखीने राम–लक्ष्मण–सीताना आनंदनो पार न रह्यो.
हर्षित थईने तेमणे सर्वज्ञ भगवाननी परम स्तुति करी; दिव्यध्वनि द्वारा
भगवाननो उपदेश सांभळ्यो. अहा, प्रभुना श्रीमुखथी चैतन्यतत्त्वनो कोई
परम अद्भुत गंभीर महिमा सांभळतां तेमने महाआनंद थयो. देशभूषण–