Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 47 of 106

background image
: ४४ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
कुलभूषणना पूर्वभवना पिता–जे गरुडेन्द्र थया हता ते केवळीभगवानना दर्शन
करवा आवी पहोंच्या. राम–लक्ष्मण उपर तेओ प्रसन्न थया ने आदरपूर्वक कह्युं:
आ बंने मुनिओ मारा पूर्वभवना पुत्रो छे, तमे तेमनी भक्ति करी उपसर्ग दूर
कर्यो ते देखीने हुं घणो प्रसन्न थयो छुं. माटे तमे जे मांगो ते हुं आपुं! त्यारे
रामे कह्युं: कोईवार अमारा उपर संकट आवे तो ते वखते अमने संभाळजो.–
ते वचन प्रमाण करीने गरुडेन्द्रे कह्युं–भले, हुं तमारी पासे ज छुं. भगवाननी
वाणी सांभळीने अनेक जीवो धर्म पाम्या. राजा अने प्रजाजनो नगरीमां पाछा
फर्या, ने आनंदनो उत्सव कर्यो. केवळज्ञानना प्रतापे सर्वत्र आनंद मंगळ
छवाई गया.
‘श्री रामचंद्रजी बळभद्र तद्भव मोक्षगामी छे ’ एम केवळीप्रभुनी
वाणीमां सांभळीने लोकोए तेमनुं घणुं सन्मान कर्युं. मुनिवरोने केवळज्ञान
उत्पन्न थवाथी आ भूमिने महा तीर्थरूप समजीने राम–लक्ष्मण–सीता केटलाक
दिवस अहीं ज रह्या, ने महान उत्सवपूर्वक पर्वतपर अनेक भव्य मंदिरो
करावीने, अद्भुत जिनभक्ति करी. त्यारथी आ वंशस्थ पर्वतने लोको रामगिरि
कहेवा लाग्या. आजे पण मध्यप्रदेशमां ते रामटेकतीर्थ तरीके प्रसिद्ध छे. (सं.
२०१५ मां अनेक भक्तो सहित पू. श्री कानजीस्वामीए ते रामटेक तीर्थनी पण
यात्रा करी हती.)
* * *
मोक्षगामी बे राजकुमारो....तेमनुं साचुं कुटुंब
देशभूषण अने कुलभूषण–ए बंने राजकुमार बंधुओ, ज्यारे एकाएक
संसारथी विरक्त थईने मुनिदीक्षा लेवा तैयार थया छे, त्यारे पुत्रवियोगथी
व्याकुळ माता पुत्रोने दीक्षा लेता रोकवा घणो प्रयत्न करे छे, ने मुनिपणामां
घणां कष्ट बतावतां कहे छे के बेटा, त्यां कोई माता–पिता के परिवार नथी;
कुटुंब वगर तमे एकला कई रीते रहेशो? ते वखते वैरागी–कुमारो माताने कहे
छे के–हे माता! मुनिदशामां तो महा आनंद छे. सांभळो–
धैर्यं यस्य पिता क्षमा च जननी शांतिश्चिरं गेहिनी,
सत्यं सुनुरयं दया च भगिनी भ्राता मन: संयम:
शय्या भूमितलं दिशोऽपि वसनं ज्ञानामृतं भोजनं,
एते यस्य कुटुंबिनो वद सखे! कस्मात् भयं योगिन:
।।