करवा आवी पहोंच्या. राम–लक्ष्मण उपर तेओ प्रसन्न थया ने आदरपूर्वक कह्युं:
कर्यो ते देखीने हुं घणो प्रसन्न थयो छुं. माटे तमे जे मांगो ते हुं आपुं! त्यारे
रामे कह्युं: कोईवार अमारा उपर संकट आवे तो ते वखते अमने संभाळजो.–
ते वचन प्रमाण करीने गरुडेन्द्रे कह्युं–भले, हुं तमारी पासे ज छुं. भगवाननी
वाणी सांभळीने अनेक जीवो धर्म पाम्या. राजा अने प्रजाजनो नगरीमां पाछा
फर्या, ने आनंदनो उत्सव कर्यो. केवळज्ञानना प्रतापे सर्वत्र आनंद मंगळ
छवाई गया.
उत्पन्न थवाथी आ भूमिने महा तीर्थरूप समजीने राम–लक्ष्मण–सीता केटलाक
दिवस अहीं ज रह्या, ने महान उत्सवपूर्वक पर्वतपर अनेक भव्य मंदिरो
करावीने, अद्भुत जिनभक्ति करी. त्यारथी आ वंशस्थ पर्वतने लोको रामगिरि
२०१५ मां अनेक भक्तो सहित पू. श्री कानजीस्वामीए ते रामटेक तीर्थनी पण
यात्रा करी हती.)
व्याकुळ माता पुत्रोने दीक्षा लेता रोकवा घणो प्रयत्न करे छे, ने मुनिपणामां
घणां कष्ट बतावतां कहे छे के बेटा, त्यां कोई माता–पिता के परिवार नथी;
कुटुंब वगर तमे एकला कई रीते रहेशो? ते वखते वैरागी–कुमारो माताने कहे
छे के–हे माता! मुनिदशामां तो महा आनंद छे. सांभळो–
सत्यं सुनुरयं दया च भगिनी भ्राता मन: संयम:
एते यस्य कुटुंबिनो वद सखे! कस्मात् भयं योगिन: