Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ४५ :
धैर्य तो जेनो पिता छे, क्षमा जेनी जनेता छे, अत्यंत शांति ते गृहिणी छे, सत्य
जेनो सुत छे, दया जेनी बहेन छे, अने संयम जेनो भाई छे; वळी पृथ्वी जेनी
शैया छे, आकाश जेनां वस्त्र छे, ज्ञानामृत जेनुं भोजन छे,–जेने आवा उत्तम
कुटुंबीओ छे ते योगिने शेनो भय होय?
–आम कही, विलाप करती माताने मुकीने देशभूषण–कुलभूषण
बंने कुमारो वनमां चाल्या गया, ने दीक्षा लई मुनि थया. मुनि थईने
चैतन्यना अनंत गुणपरिवार साथे खूब आनंदथी केलि करवा लाग्या.
शुद्धोपयोगवडे स्वकुटुंबीजनो साथे केलि करतां करतां अंते केवळज्ञान
प्रगट करीने, अनंतसुखगुणपरिवार सहित मोक्षमां बिराज्या....तेमने
नमस्कार हो.
* मंगल उत्सव *
अहो, वर्द्धमान जिनेन्द्रदेव!
आत्माने आनंद देनारुं आपनुं शासन पामीने, अमने
आत्मानी आराधनानो सुंदर अवसर मळ्‌यो छे.
तेमांय आपश्रीना निर्वाणनो अढीहजारवर्षीय महोत्सव
चाली रह्यो छे त्यारे आपे बतावेला मार्गे अमे पण आवीए छीए,
ने आपना उपकारने याद करीए छीए.
हे साधर्मीजनो! भगवानना शासनने पामीने आपणुं
जीवन आत्मानी आराधनामय बनाववुं; संसारना भयानक
दुःखोथी छूटवा, ने साची आत्मशांति पामवा, आत्मानी अद्भुत
वीतरागी सुंदरताने अनुभवगम्य करवी–ए ज मंगल उत्सव छे.
जे जाणतो महावीरने चेतनमयी शुद्धभावथी;
ते जाणतो निजात्मने समकित ल्ये आनंदथी.