Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
वैराग्य भीनी विदाय
हे बंधुजनो! हुं तमारी विदाय लउं छुं.....जेने
ज्ञान ज्योति प्रगट थई छे एवो आ आत्मा आजे
आत्मारूपी जे पोतानो अनादिबंधु तेनी पासे जाय छे.
ज्ञानतत्त्वना निर्णय उपरांत मोक्षार्थीजीव ज्यारे चारित्र
दशा अंगीकार करवा जाय छे त्यारे कुटुंब परिवार पासे तत्त्वज्ञान
सहित अतिशय वैराग्यपूर्वक विदाय ल्ये छे–तेनुं वर्णन मुमुक्षुना
चित्तने संसारथी एकदम ऊठाडी मुके छे....ने पछी दुःखथी सर्वथा
छूटवानो अभिलाषी ते मोक्षार्थी जीव ज्यारे चारित्रवंत
कुंदकुंदस्वामी जेवा आचार्यभगवंत पासे जईने, तेमना चरणे
पडीने ईष्टनी प्रार्थना करे छे के प्रभो! शुद्धात्मानी उपलब्धिरूप
सिद्धिथी मने अनुगृहीत करो! पछी श्री गुरु तेने दीक्षा आपे छे
के–, आ शुद्धात्मानी उपलब्धिरूप सिद्धि! बस, पछी दीक्षित
थयेलो ते जीव निर्विकल्पध्यानवडे मुनि थईने मोक्षमार्गमां विचरे
छे.–आवा दीक्षामहोत्सवनुं आनंदकारी वर्णन सांभळतां आत्मा
प्रशांतरसमां झुलवा मांडे छे...अहा! जाणे मुनिवरोना टोळां
आपणी सन्मुख बिराजता होय! ने शांतरसना फूवारा चारेकोर
ऊछळी रह्या होय!–तेनी वच्चे बेठा होईए! एवी शांतउर्मिओ
गुरुदेवना प्रवचन सांभळतां ऊल्लसती हती...अने एवी
भावना जागती हती के अहा, परमात्माना पंथे विचरता एवा
कोई वीतराग संतमुनि पधारे ने तेमनी पाछळ–पाछळ तेमना
मार्गे चाल्या जईए...
अहा, गुरुदेव कहे छे के जेने मोक्ष साधवो होय तेणे आवी
मुनिदशानुं चारित्र अंगीकार कर्ये छूटको छे, जेनी अंदर
शुद्धोपयोगनुं जोर छे ने जे अतीन्द्रिय आनंदथी भरपूर छे
–एवी मुनिदशाना अपार महिमापूर्वक आ प्रवचन वाचो...ने
एवी मुनिभावनानी मंगल मोज जाणो. (सं.)