तेने ज ध्यावे छे; अन्यमां तेमनो उपयोग जतो नथी. जणाय छे बधुं, पण
सर्वज्ञतारूपे ने साथे पूर्णआनंदरूपे परिणमे छे.
पोते साध्यो ने बताव्यो, ते अपूर्व आनंदमय मोक्षमार्गने अमे अवधारित कर्यो
छे, ने कृत्य कराय छे. हे वीरनाथ परमदेव! आपे देखाडेला निर्वाणमार्गमां अमे
प्रवर्तन करी रह्या छीए.
अम्बाह [मुरेना म
‘आत्मधर्म’ को यहां श्री बाबुलालजी जैन के पास देखी;
अत्यधिक पसंद आई. ईसका प्रमुख कारण यह है कि ईस
पत्रिकाके सभी लेख व कहानी कवितायें ईतनी शिक्षाप्रद होती
हैं कि वह प्रत्येक पाठकके हृदयमें सच्चे स्वरूपका अनुभव
कराये विना नहीं रहती. सच पूछा जाय तो वर्तमानयुगमें
यह पत्रिका कितनी उपयोगी है! यह तो स्वयं पत्रिका ही
पाठकोंको आभास करा सकेगी; मेरा लिखना तो सूर्यको
दिपकसे दिखानेके समान होगा. अत: और कुछ न लिखकर
श्री वीरप्रभुसे कामना करता हूं कि....यह पत्रिका चिरकाल तक
आत्महितके चाहनेवालेको हंमेशां प्राप्त होती रहे.