खरेखर रागादि अशुद्धभावो साथे पण ते अतन्मय छे;–अने स्वधर्मोमां तन्मय छे.
अने उपलब्ध करवा योग्य छे. धर्मीने सम्यग्दर्शनमां–सम्यग्ज्ञानमां केवा आत्मानी
उपलब्धि छे? तेनुं आ वर्णन छे. निर्मळपरिणतिए अंतर्मुख थईने ध्रुवरूप केवा
आत्मानो अनुभव कर्यो छे? पोताना आत्माने धर्मीजीव केवो माने छे! तेनुं आ
अलौकिक वर्णन छे. आत्मा महान पदार्थ छे, एक तो अतीन्द्रियज्ञानने लीधे महान
छे, ने बीजुं मोक्षनो साधक छे तेथी महान छे. अहीं एकत्वपणाना पांच बोल चाले
छे.
शुद्धपणुं छे; अने शुद्धपणुं स्वत: सिद्ध होवाथी ते ज ध्रुव छे.–हे जीव! आवा तारा
आत्माने नक्की करीने पर्यायने एनी अंदर पहोंचाडीने एना भेटा कर!–त्यारे तने
तारो परमआनंदनो नाथ परमात्मा मळशे. बीजा अध्रुव पदार्थोथी तारे शुं प्रयोजन
छे? पंचपरमेष्ठी भगवंतो पोते महान छे,–वीतराग छे, तोपण आ आत्माने माटे
तेओ ध्रुव नथी; तेओ आ आत्माथी जुदा छे, तेमना आश्रये तो शुभराग थशे. आ
आत्माने माटे तो पोतानो ज्ञानस्वरूप आत्मा ज ध्रुव छे; तेथी ते ज उपलब्ध
करवा योग्य छे.
स्वधर्मथी अविभाग छे, तेथी तेने एकपणुं छे.
ग्रहण करनारी अनेक ईन्द्रियो, तेमने अतिक्रमीने एटले के ईन्द्रियोनुं अवलंबन
छोडीने, अतीन्द्रिय ज्ञानवडे जाणनारो महान पदार्थ छे. हुं अतीन्द्रिय