Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ५३ :
पोते दर्शनभूत छे एवा आत्माने अतन्मय
(ज्ञानथी जुदा) परद्रव्यथी विभाग छे,
अने स्वधर्मथी अविभाग छे, तेथी तेने एकपणुं छे.
पोताना ज्ञानादि स्वधर्मो साथे तन्मय छे, ने समस्त परद्रव्यो साथे
अतन्मय छे–आम स्व–परनी वहेंचणी करीने धर्मीनी पर्याय स्वतरफ झुकी छे एटले
खरेखर रागादि अशुद्धभावो साथे पण ते अतन्मय छे;–अने स्वधर्मोमां तन्मय छे.
–आवा एकत्वरूप आत्मा शुद्ध छे, तेथी ते ज पोताने माटे ध्रुव छे, ते ज आश्रय
अने उपलब्ध करवा योग्य छे. धर्मीने सम्यग्दर्शनमां–सम्यग्ज्ञानमां केवा आत्मानी
उपलब्धि छे? तेनुं आ वर्णन छे. निर्मळपरिणतिए अंतर्मुख थईने ध्रुवरूप केवा
आत्मानो अनुभव कर्यो छे? पोताना आत्माने धर्मीजीव केवो माने छे! तेनुं आ
अलौकिक वर्णन छे. आत्मा महान पदार्थ छे, एक तो अतीन्द्रियज्ञानने लीधे महान
छे, ने बीजुं मोक्षनो साधक छे तेथी महान छे. अहीं एकत्वपणाना पांच बोल चाले
छे.
चेतनस्वरूप आत्माने बीजा बधा परद्रव्योथी जुदापणुं, अने स्वधर्मथी
तन्मयपणुं–एवुं एकपणुं छे; एकपणामां अन्यना संसर्गनो अभाव होवाथी
शुद्धपणुं छे; अने शुद्धपणुं स्वत: सिद्ध होवाथी ते ज ध्रुव छे.–हे जीव! आवा तारा
आत्माने नक्की करीने पर्यायने एनी अंदर पहोंचाडीने एना भेटा कर!–त्यारे तने
तारो परमआनंदनो नाथ परमात्मा मळशे. बीजा अध्रुव पदार्थोथी तारे शुं प्रयोजन
छे? पंचपरमेष्ठी भगवंतो पोते महान छे,–वीतराग छे, तोपण आ आत्माने माटे
तेओ ध्रुव नथी; तेओ आ आत्माथी जुदा छे, तेमना आश्रये तो शुभराग थशे. आ
आत्माने माटे तो पोतानो ज्ञानस्वरूप आत्मा ज ध्रुव छे; तेथी ते ज उपलब्ध
करवा योग्य छे.
(३) आत्मा अतीन्द्रय महा पदार्थ छे; तेने
ईन्द्रियात्मक परद्रव्यथी विभाग छे, अने तेना ज्ञानस्वरूप
स्वधर्मथी अविभाग छे, तेथी तेने एकपणुं छे.
जेणे ध्रुवपणे पोताना शुद्धआत्माने उपलब्ध कर्यो छे–एवो धर्मीजीव जाणे छे के
–मारो आत्मा, जे प्रतिनिश्चित स्पर्श–रस–गंध–वर्णरूप गुणो अने शब्दरूप पर्यायोने
ग्रहण करनारी अनेक ईन्द्रियो, तेमने अतिक्रमीने एटले के ईन्द्रियोनुं अवलंबन
छोडीने, अतीन्द्रिय ज्ञानवडे जाणनारो महान पदार्थ छे. हुं अतीन्द्रिय