आत्माने देखवो.–ए एकपणामां ज शुद्धपणुं छे.
भिन्नता बतावे छे. परज्ञेयो भले नित्य होय–तोपण मने तेमनुं आलंबन नथी, ने
ते ज्ञेयो साथे मारा ज्ञानने तन्मयता नथी. मारा ज्ञानधर्मने मारा आत्मानी साथे
तन्मयता छे, माटे मारुं एकपणुं छे. आम एकपणाने लीधे शुद्ध छुं, ने शुद्ध होवाथी
ध्रुव छुं.–आवो मारो ध्रुवआत्मा ते ज मने आलंबनरूप–ध्येयरूप–आश्रयरूप छे.
–एम धर्मी अनुभवे छे.
रूप छे, तेथी अध्रुव छे, ते मारा स्वभावरूप नथी, तेनुं आलंबन मने नथी;
मारामां तेनो अभाव छे. ते पदार्थ संबंधी मारुं जे ज्ञान छे ते ज्ञानपर्यायरूप
स्वधर्मथी हुं अभिन्न छुं. आ रीते परज्ञेयोथी विभाग, ने पोताना आत्माथी
अविभाग–एवो एकत्वरूप शुद्ध आत्मा छे ते ज मारे माटे ध्रुव छे, ते कोईथी
करायेलो नथी, स्वत: सिद्ध सत् छे; आवा ध्रुवआत्माने द्रष्टिमां लईने आचार्यदेव
कहे छे के –‘....
कारणरूप परद्रव्यनुं आलंबन नथी, तेथी एकत्व ते शुद्ध छे; ने शुद्धपणाने लीधे
आत्मा पोते पोताने माटे ध्रुव छे. आवो ध्रुव आत्मा आलंबन करवा जेवो छे.
शुद्धनय मात्र आवा शुद्ध–ध्रुव आत्माना निरूपणस्वरूप छे–एटले के
अनुभवस्वरूप छे. ध्रुवपणाने लीधे श्रद्धा–ज्ञानपर्यायमां ते ज प्राप्त करवा जेवो छे,
प्रसिद्ध करवा जेवो छे, ध्याववा जेवो छे.–ते सर्व प्रकारे उपादेय छे. पर्यायने आवा
आत्मामां तन्मय