Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
करीने ध्याववो ते ध्रुवध्येयनुं ध्यान छे. धर्मीजीवोए पोतानी पर्यायमां आवो ध्रुव
आत्मा उपलब्ध कर्यो छे; ने जेणे धर्मी थवुं होय तेणे पण पर्यायने अंतर्मुख करीने
पोताना आवा धु्रवआत्माने उपलब्ध करवो–अनुभवमां लेवो.–आ ज जैन शासन
छे; स्वसन्मुख थईने जे शुद्धोपयोगे अखंड आत्माने स्वध्येयमां लीधो, ते
शुद्धोपयोगमां आखुं जैनशासन आवी गयुं.
“आ रीते आत्मा शुद्ध छे, कारणके चिन्मात्र शुद्धनय मात्र तेटला ज
निरूपणस्वरूप छे. अने आ एक शुद्धआत्मा ज ध्रुवपणाने लीधे उपलब्ध करवा
योग्य छे.” अन्य पदार्थो तो, रस्ते चालता मुसाफरने वच्चे आवता वृक्षोनी
छायाना संग जेवा अध्रुव छे; ते पदार्थो संयोगी छे, अने तेमनो संयोग क्षण–
भंगुर–अध्रुव छे; तेनाथी आत्माने कांई प्रयोजन नथी. संयोगथी भिन्न ने
स्वभावधर्मोथी अभिन्न एवो पोतानो आत्मा ज पोताने माटे ध्रुव छे, तेने
उपलब्ध करवो एटले के अनुभवमां लेवो ते ज प्रयोजन छे.
परपदार्थोनो संयोग तो रस्ताना झाडनी छाया जेवो छे, ते कांई
मुसाफरनी साथे नथी रहेतो; तेनाथी आत्माने शुं प्रयोजन छे? तेनाथी
भिन्नता जाणीने, स्वमां एकत्व करतां शुद्धता प्रगटी. अहो, परथी भिन्न ने
स्वथी अभिन्न (एवा एकत्व–विभक्त) आत्मानी वात जीवने सांभळवा
मळवी पण दुर्लभ छे. ‘परथी जुदा एकत्वनी उपलब्धि केवळ सुलभ ना.’
(स. गा. ४) तेथी आचार्यदेव कहे छे के हुं मारा आत्माना समस्त वैभवथी
एकत्व–विभक्त आत्मा देखाडुं छुं. (स. गा. ५) त्यां ‘दर्शावुं’ छुं’ एम कह्युं,
ने अहीं एवा आत्माने ‘हुं मानुं छुं’ एम कह्युं छे; ते स्वभावआश्रित थयेली
शुद्धपर्याय छे. अहो, आत्मा अचिंत्य अद्भुत आश्चर्यकारी महापदार्थ छे.
आवो महापदार्थ पोते स्वसन्मुख थईने मोक्षरूप महान पुरूषार्थने साधे छे,
तेथी ते महान अर्थ छे, मोक्षस्वरूप छे, तेनी सन्मुख थईने व्यक्तिरूप मोक्षने
साधे छे. स्वसन्मुख थईने आवा आत्माने मानवो, तेमां मोक्षमार्ग आवी
जाय छे. शुद्ध आत्मानी उपलब्धि कहो के मोक्षनो मार्ग कहो.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते स्वधर्म छे, तेमां परद्रव्यना संपर्कनो अभाव
छे, ने शुद्धआत्मानो ज आश्रय छे. आत्माना आश्रये प्रगटेला ते धर्मोथी आत्माने
अविभाग छे; परद्रव्योथी विभाग अने स्वधर्मोथी अविभाग–आवा स्वभावने
लीधे आत्मा एक छे; एक होवाथी शुद्ध छे, ने शुद्ध होवाथी ध्रुव छे; तेथी ते ज
आश्रय करवा योग्य छे. तेनो आश्रय करतां ध्रुवनुं धन पर्यायमां प्राप्त थाय छे. आ
सिवाय