Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
अनादिअनंत चैतन्य छुं, मारो खरो बंधुवर्ग तो ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत
गुणो छे के जे सदाय मारी साथे ज छे. बहारना आ बंधुवर्ग–सगांसंबंधी ते
खरेखर अमारां नथी, अमे हवे निर्मोह थईने चैतन्यनी शुद्धताने साधवा माटे
जंगलमां जशुं. जुओ, आ धर्मीनो वैराग्य! चैतन्यनी मस्ती जागी, वैराग्यनो
पावर फाट्यो....ते हवे संसारना पींजरामां नहीं रहे. अमारो अमारा
संसारना कलेशथी थाक्यो छे....अमारुं स्थान हवे वनमां.... चैतन्यनी शांतिमां
ज छे. वनना सिंह अने वाघनी वच्चे जईने अमे अमारा चैतन्यने साधशुं....
ने समभावमां रहेशुं. चैतन्यतत्त्वनुं भान अने अनुभूति तो पहेलांं थया छे,
हवे तेनी पूर्णताने साधवा माटे आ रीते वैराग्यपूर्वक मोक्षार्थी जीव मुनि थाय
छे.
अहो, बंधुवर्गना आत्माओ! हुं जराय तमारो नथी, ने तमे जराय मारां
नथी–एम निश्चयथी तमे जाणो...एक ज्ञानस्वभाव ज अमारो छे, जगतमां बीजुं
कांई अमारुं नथी–एम में जाण्युं छे, ज्ञानज्योति मने प्रगट थई छे. मारो
चैतन्यस्वरूप आत्मा ज मारो साचो बंधु छे, एने में ओळख्यो छे–तेथी मारा
अनादिना साचा बंधु पासे ज हवे हुं जाउं छुं....एटले हवे तमारी विदाय लउं छुं.
हवे अमे मोहरहित थईने अमारा चैतन्यनी शांतिमां ठरशुं ने सिद्धपदने साधशुं.
जुओ, आ ज्ञानीनो वैराग्य! आ चारित्रदशानी तैयारी! ते वैरागीजीव
पिता तथा माता पासे जईने वैराग्यपूर्वक कहे छे के हे पिता! हे माता! आ
पुरुषनो आत्मा तमारा आत्माथी उत्पन्न थयो नथी–एम निश्चयथी तमे जाणो. में
मारा आत्माने बधाथी भिन्न जाण्यो छे, तेथी हवे बधा साथेनो मोहसंबंध छोडीने,
वैराग्यथी हुं मारा आत्माने साधवा मांगुं छुं; माटे तमे मने रजा आपो. जेने
ज्ञानज्योति प्रगटी छे एवो आ आत्मा आजे पोताना आत्मा पासे जाय छे.
एटले के पोते पोतामां लीन थाय छे. आत्मा ज पोतानो अनादिनो जनक छे
–पोते ज पोतानी निर्मळपर्यायरूप प्रजानो उत्पादक छे. आवा अमारा आत्माने
अने अनुभवमां लीधो छे ने हवे मुनि थईने आत्माना केवळज्ञान–निधानने
खोलशुं.–आवी भावनाथी पिता–माता पासे विनयथी रजा ले छे.
अहा, धर्मकाळमां तो आवा घणाघणा प्रसंगो बनता. नाना
कलैयाकुंवर जेवा राजपुत्रो पण अंदर आत्मानो अतीन्द्रियआनंद देखीने
वैराग्य पामता ने दीक्षा लेता. नाना हाथमां नानकडुं कमंडळ ने नानकडी
मोरपींछी लईने महान चैतन्यनी