Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ६६ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
१२७. पृथ्वी, जळ, अग्नि अने वायुथी जे जीवोने प्रतिघात नथी थतो ते
जीवोने सूक्ष्मकायिक जाणो, अने जे जीवोने प्रतिघात थाय छे तेने
स्थूळकाय (बादर) जाणो.
१२८. प्रत्येक वनस्पतिजीवो बे प्रकारनां छे–१ निगोदसहित तथा बीजा
निगोदरहित; त्रसजीवो पण विकलेन्द्रिय अने सकलेन्द्रिय एम बे
प्रकारनां छे: १– बेईंद्रिय, त्रणईन्द्रिय तथा चतुरीन्द्रिय ते विकलेन्द्रिय
छे, ने पंचेन्द्रि ते सकलेन्द्रिय छे.
१२९. पंचेन्द्रिय–तिर्यंचो त्रण प्रकारनां छे–जलचर, स्थळचर अने नभचर
(आकाशगामी). ते त्रणमांथी प्रत्येक मनसहित (संज्ञी) अने
मनरहित (असंज्ञी) एम बे प्रकारनां छे.
१३०. वळी उपरोक्त छप्रकारनां तिर्यंचो पण गर्भज अने संमूर्छन–एम बे
प्रकारनां छे. भोगभूमिना तिर्यंचो गर्भज होय छे, तथा तेओ स्थळचर
अथवा नभचर ज होय छे; (जलचर नथी होतां;) अने संज्ञी ज होय छे.
१३१. तिर्यंचना कुल भेद ८५ छे.
उपरनी गाथामां कहेलां ८ प्रकारनां गर्भज जीवो पर्याप्त अने
अपर्याप्त एम बे प्रकारनां छे; एटले गर्भजनां १६ भेद थया. अने
सम्मूर्छनना २३ भेद छे ते दरेकना पर्याप्त, अपर्याप्त अने लब्धि–
अपर्याप्त एवा त्रण त्रण भेदथी ६९ भेद थया. (१६ + ६९ = ८५)
१३२. आर्यखंडमां, म्लेच्छखंडमां, भोगभूमिमां तथा कुभोगभूमिमां जे मनुष्यो
छे ते बे प्रकारनां छे–निवृत्ति–अपर्याप्त तथा पूर्ण पर्याप्तिवाळा. (कुल ८
प्रकार थया.)
१३३. संमूर्छनमनुष्य नियमथी आर्यखंडमां ज होय छे अने वळी
लब्धिअपर्याप्त ज होय छे. (आ रीते उपरना ८ तथा आ १ मळीने
मनुष्यना ९ भेद थया.)
नारकी तथा देवो, पर्याप्त अने निवृत्तिअपर्याप्त एम बे प्रकारनां
होय छे (एटले ४ प्रकार तेमना थया.)
(तिर्यंचना ८५ मनुष्यना ९ अने देव–नारकना ४ एम संसारी
जीवना ९८ जीवसमास थया.)
१३४–१३५. आहार, शरीर, ईन्द्रिय, श्वासोश्वास, भाषा अने मन–एना
व्यापारमां परिणमवारूप जीवनी छ शक्ति छे.