Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ६९ :
वांचको साथे वातचीत अने विविध समाचार
(संकलन ब्र. ह. जैन)
मोक्षगार्मीजीव केवो होय?
मोक्षगार्मी जीव केवो होय? तेना वर्णनमां प्रवचनसार (गा. २४०मां)
आचार्यदेव कहे छे के, अनेकान्तकेतन आगमज्ञानना बळथी जे पुरुष, सकळ
पदाथोनाज्ञेयाकारो साथे मिलित थतुं एटले के सर्व ज्ञेयोने जाणतुं – एवुं विशद –
स्पष्ट अतीन्द्रियज्ञान जेनो आकार छे एवा ज्ञानस्वरूप आत्माने श्रद्धे छे – जाणे
छे – अनुभवे छे तेने ज सम्यग्द्रर्शन – ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग होय छे. अहो,
स्व–परने जाणनारुं अतीन्द्रियज्ञान जेनो आकार छे, ते जेनुं स्वरूप छे एवा
आत्मतत्त्वनी श्रद्धा ते तत्त्वार्थश्रद्धा छे, ते सम्यग्द्रर्शन छे. आवी तत्त्वार्थ
श्रद्धानवाळो जीव साते तत्त्वोने बराबर जाणतो थको, कदी स्वच्छंदी नहि थाय;
स्वतत्त्वना आश्रये ते मोक्षने साधशे. एककोर कषायसमूह ने एककोर ज्ञानरस,
ए बंनेनुं अन्योन्य मिलन होवा छतां, ते बंनेना अत्यंत स्वभावभेदने लीधे,
कषायोने पोताथी भिन्न नक्की करीने, कुशळ मल्लनी जेम एकदम अक्रमे ते
कषायोनुं मर्दन करी नांखे छे; विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावमां निश्चळ थईने कषायोने
नष्ट करे छे, – एवा जीवने संयतपणुं एटले के साधुपणुं होय छे, ते ज धर्म छे ने
ते ज मोक्षमार्ग छे.
* अहो सर्वज्ञ! एक समयमां आपे वस्तुने उत्पाद – व्यय – ध्रुव एवा
त्रण स्वरूपे देखी, ते आपनी सर्वज्ञतानुं लक्षण छे. एक समयमां एक ज वस्तुनुं
उत्पाद– व्यय– ध्रुवपणुं समजवुं ते सर्वज्ञना अनेकांतमार्गी जैन सिवाय बीजा
कोई समजी शके तेवुं नथी. – आ जिनमार्गनुं रहस्य छे. वस्तुने कोई एकान्त
नित्य माने, कोई एकान्त क्षणिक माने, पण एकसाथे नित्य – अनित्य एवा बंने
स्वरूपी एक वस्तुने जैनो ज देखे छे. –ए ज अनेकान्तरूप सम्यक्मार्ग छे.
* धर्मीजीव कोनो स्वामी छे?