पदाथोनाज्ञेयाकारो साथे मिलित थतुं एटले के सर्व ज्ञेयोने जाणतुं – एवुं विशद –
स्पष्ट अतीन्द्रियज्ञान जेनो आकार छे एवा ज्ञानस्वरूप आत्माने श्रद्धे छे – जाणे
छे – अनुभवे छे तेने ज सम्यग्द्रर्शन – ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग होय छे. अहो,
स्व–परने जाणनारुं अतीन्द्रियज्ञान जेनो आकार छे, ते जेनुं स्वरूप छे एवा
आत्मतत्त्वनी श्रद्धा ते तत्त्वार्थश्रद्धा छे, ते सम्यग्द्रर्शन छे. आवी तत्त्वार्थ
श्रद्धानवाळो जीव साते तत्त्वोने बराबर जाणतो थको, कदी स्वच्छंदी नहि थाय;
स्वतत्त्वना आश्रये ते मोक्षने साधशे. एककोर कषायसमूह ने एककोर ज्ञानरस,
ए बंनेनुं अन्योन्य मिलन होवा छतां, ते बंनेना अत्यंत स्वभावभेदने लीधे,
कषायोने पोताथी भिन्न नक्की करीने, कुशळ मल्लनी जेम एकदम अक्रमे ते
कषायोनुं मर्दन करी नांखे छे; विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावमां निश्चळ थईने कषायोने
नष्ट करे छे, – एवा जीवने संयतपणुं एटले के साधुपणुं होय छे, ते ज धर्म छे ने
ते ज मोक्षमार्ग छे.
उत्पाद– व्यय– ध्रुवपणुं समजवुं ते सर्वज्ञना अनेकांतमार्गी जैन सिवाय बीजा
कोई समजी शके तेवुं नथी. – आ जिनमार्गनुं रहस्य छे. वस्तुने कोई एकान्त
नित्य माने, कोई एकान्त क्षणिक माने, पण एकसाथे नित्य – अनित्य एवा बंने
स्वरूपी एक वस्तुने जैनो ज देखे छे. –ए ज अनेकान्तरूप सम्यक्मार्ग छे.