Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ७१ :
* धर्मीजीव अनेकान्तमार्ग अनुसार सत्य वस्तुस्वरूपने सम्यग्ज्ञानथी जाणे छे.
ते – धर्मीने सम्यग्ज्ञानप्रमाण निरंतर होय छे परंतु ध्यान तो क्यारेक
क्यारेक ज होय छे. ते ध्यान वखतनी विशेषता ए छे के ध्यानपरिणतजीव
पोतामां द्रव्य – गुण – पर्याय संबंधी कोई भेदने देखतो नथी. ध्यान कहो,
निर्विकल्पअनुभूति कहो के द्रव्यद्रष्टि कहो – तेना विषयमां कोईपण गुणभेद –
पर्यायभेद – गुणस्थान– मार्गणास्थानो वगेरेनो स्वीकार नथी, ते भेद
वगरना अभेदरूप एक शुद्ध परमतत्त्वने ज देखे छे – ध्यावे छे – अनुभवे
छे; तेमां द्वैत ज प्रतिभासतुं नथी. (आनो अर्थ एम नथी के आत्मामां ते
वखते गुण – पर्यायो छे ज नहि; विद्यमान तो छे पण अभेद तत्त्वनी
अनुभूतिमां द्रष्टिमां ते कोई भेदो देखाता नथी. सर्वोपरी एक चैतन्य
परमतत्त्व ज देखाय छे.)
अहा, आत्मानी निर्विकल्प अनुभूति एवी शांत – गंभीर छे के ते
भेदना कोई विकल्पने सहन करी शकती नथी. चैतन्यमां एकरस थयेली
अनुभूति, अतीन्द्रियभावे समस्त निजभावोने एकसाथे वेदे छे. अहा, एवा
वेदनवाळी ध्यानदशा कोई परम अद्भुत ऊंडी छे. तेथी तो ते अनुभूतिने
‘आत्मा’ ज कह्यो छे. ध्यानदशा वखते ‘आ ध्याता ने आ तेनुं ध्येय’ एवी
भेद – प्रक्रिया होती नथी.
* आवा अभेद आत्माना ध्यानमां परमआहलादरूप सुखनी अनुभूति छे ते
मोक्षमार्ग छे; ते मोक्षमार्गपर्यायने ज कोईवार ध्रुवनुं ध्यान, कोईवार
शुद्धोपयोग, परमपारिणामिकभाव, ज्ञायकभावनी उपासना, सम्यक्त्वनुं
ध्यान, अतीन्द्रियआनंदनुं ध्यान, शुद्धनय, जैनशासननी अनुभूति – ए
प्रमाणे कोईवार द्रव्यप्रधान नामथी ने कोईवार पर्यायप्रधान नामथी
ओळखवामां आवे छे, –त्यां जैनशासनना अनेकान्तमार्गने श्रीगुरुप्रतापे
जाणनारा मुमुक्षुओ मुंझाता नथी. अनेकान्तना बळे भगवती –
वस्तुव्यवस्थाने बराबर ओळखीने, जे रीते आत्माने शांतिनुं वेदन थाय ते
रीते तेओ वर्ते छे. – अने आ ज महावीर भगवानना शासननो सर्वोत्कृष्ट
उपकार छे.
* शुद्धोपयोग पोताना ध्येयरूप शुद्ध पारिणामिकभावथी अभिन्न छे के भिन्न?
ए संबंधमां (प्र. गा. १८१ नी टीकामां) श्री जयसेनस्वामीए सुंदर स्पष्टता
करी छे, – जे नीचे मुजब छे –