क्यारेक ज होय छे. ते ध्यान वखतनी विशेषता ए छे के ध्यानपरिणतजीव
पोतामां द्रव्य – गुण – पर्याय संबंधी कोई भेदने देखतो नथी. ध्यान कहो,
निर्विकल्पअनुभूति कहो के द्रव्यद्रष्टि कहो – तेना विषयमां कोईपण गुणभेद –
पर्यायभेद – गुणस्थान– मार्गणास्थानो वगेरेनो स्वीकार नथी, ते भेद
वगरना अभेदरूप एक शुद्ध परमतत्त्वने ज देखे छे – ध्यावे छे – अनुभवे
छे; तेमां द्वैत ज प्रतिभासतुं नथी. (आनो अर्थ एम नथी के आत्मामां ते
वखते गुण – पर्यायो छे ज नहि; विद्यमान तो छे पण अभेद तत्त्वनी
अनुभूतिमां द्रष्टिमां ते कोई भेदो देखाता नथी. सर्वोपरी एक चैतन्य
परमतत्त्व ज देखाय छे.)
अनुभूति, अतीन्द्रियभावे समस्त निजभावोने एकसाथे वेदे छे. अहा, एवा
वेदनवाळी ध्यानदशा कोई परम अद्भुत ऊंडी छे. तेथी तो ते अनुभूतिने
‘आत्मा’ ज कह्यो छे. ध्यानदशा वखते ‘आ ध्याता ने आ तेनुं ध्येय’ एवी
भेद – प्रक्रिया होती नथी.
शुद्धोपयोग, परमपारिणामिकभाव, ज्ञायकभावनी उपासना, सम्यक्त्वनुं
ध्यान, अतीन्द्रियआनंदनुं ध्यान, शुद्धनय, जैनशासननी अनुभूति – ए
प्रमाणे कोईवार द्रव्यप्रधान नामथी ने कोईवार पर्यायप्रधान नामथी
ओळखवामां आवे छे, –त्यां जैनशासनना अनेकान्तमार्गने श्रीगुरुप्रतापे
जाणनारा मुमुक्षुओ मुंझाता नथी. अनेकान्तना बळे भगवती –
वस्तुव्यवस्थाने बराबर ओळखीने, जे रीते आत्माने शांतिनुं वेदन थाय ते
रीते तेओ वर्ते छे. – अने आ ज महावीर भगवानना शासननो सर्वोत्कृष्ट
उपकार छे.
करी छे, – जे नीचे मुजब छे –