Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०१ आत्मधर्म : ८३ :
‘अहिंसा परम धर्म छे’
१. एक जंगलनी रमणीयगूफामां भद्रपरिणामी एक सुवर (भूंड) रहेतुं हतुं.
२. ते जंगलमां एक वाघ रहेतो हतो, ते क्रूरपरिणामी हतो.
३. एक वीतरागी मुनिराज विचरता–विचरता ते जंगलमां आव्या; ने जे
गूफामां बिराजमान थईने शुद्धोपयोग वडे आत्मध्यान करवा लाग्या.
मुनिराजने गूफामां देखीने –
१. भद्रपरिणामी भूंडने एवो शुभ विचार आव्यो के अहा, आ कोई वीतरागी
महात्मा मारी गूफामां पधार्या छे, एमने देखतां ज कोई अपूर्व शांति थाय छे.
एना पधारवाथी मारी गूफा धन्य थई... हुं कई रीते तेमने सेवा करुं! एवा
शुभभावपूर्वक ते भूंड गूफाना दरवाजे बेसीने मुनिराजनी रक्षा करतुं हतुं.
२. ते ज वखते गुफा पासे आवेला वाघने एवो अशुभ भाव थयो के हुं आ
मनुष्यने मारीने खाई जाउं.
३. ते ज वखते शुद्धोपयोगां लीन ते मुनिराज, नथी तो भूंड उपर राग करता,
के नथी वाघ उपर द्वेष करता, ए तो वीतराग छे.
मुनिराजने खाई जवा माटे वाघ गूफा पासे आव्या. भूंडने तेनो ख्याल
आवी गयो एटले तरत ज वच्चे आवीने तेणे वाघने रोक्यो.
वाघ एना पर तूटी पड्यो.... वाघ अने भूंड बंने लड्या; खूब लड्या. क्रूर
वाघनी सामी पण भूंडे बराबर टककर झीली; तेना मनमां एक ज धून हती के
प्राण आपीने पण हुं मुनिने बचावीश. बंने खूब लडे छे, – एक तो मुनिना रक्षण
माटे लडे छे, ने बीजो मुनिना भक्षण माटे लडे छे. लडतां – लडतां बंनेए
एकबीजाने मारी नांख्या... बंनेए एकबीजानी हिंसा करी. वाघ तो मरीने दुर्गति
गयो; सुवर मरीने सुगतिमां गयुं; मुनिराज तो ध्यानमां ज वीतरागपणे बिराजी
रह्या ने केवळ – ज्ञान प्रगटावीने मोक्षगति पाम्या.
हवे तेमनुं पृथककरण
आ दृष्टांतमां त्रण पात्रो छे:–
१. वाघनो जीव: – जे मुनिराजने मारवाना अप्रशस्त द्वेष – कषायमां वर्ते छे.