मारी सहज शक्ति, के जे चैतन्यभावरूप प्राणवाळी छे ने जे कोईथी हणी शकाती
नथी, तेनाथी ज हुं निरंतर जीवनारो छुं. दरियो मने डुबाडी शके नहि, मोटर मने
मारी शके नहि; गोळी मनी वींधी शके नहि, के अग्नि मने बाळी शके नहि; जीवना
जीवपणानो (चेतनपणानो) नाश करी शके एवी कोईनी ताकात जगतमां नथी. –
आम देहथी भिन्न पोताना चैतन्यजीवनने जे जाणे छे तेने मरणनो भय रहेतो
जीवने मरणनी बीक मटी जाय छे.
आत्मानी ओळखाण एटले स्वनी अनुभूति; अने स्वानुभूति एटले साचा
सुखनो मार्ग; ए ज साचो आनंदनो मार्ग अने ए ज साचो वीतरागधर्म! आपणे
सौ दुःखथी थाकेला जीवो जो खरेखर तेनाथी छूटीने सुखी थवा चाहता होईए – तो
निरंतर आत्मानी ओळखाण अने अनुभूतिनो साची लगनीथी अभ्यास करीए,
– ए ज उपाय छे. आ सिवाय अन्य कोई सुखनो मार्ग जगतमां नथी. स्वनी
अनुभूति ए ज साचुं आत्मदर्शन, अने साचुं आत्मदर्शन एटले ज निरंतर सुखनुं
वेदन! आवो बंधुओ! वीरप्रभुनी आ वीतरागीविद्या होंशथी भणीए ने सुखी
थईए.”
बहेनोए आजे हवे युवानो उपरनुं ए महेणुं तोडी नांख्युं छे के ‘जुवानीया धर्ममां
रस नथी लेता. ’ आजे धर्ममां ने सदाचारमां रस लईने हजारो युवानोए (तेमज