Atmadharma magazine - Ank 384
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ८८ : आत्मधर्म : आसो : २५०१
बाळकोए पण) ए बतावी आप्युं छे के – धर्म के सदाचार ए कांई मात्र
बुढ्ढाओनो ईजारो नथी, युवानोने पण एटलो ज अधिकार छे. हवे आपणा युवानो
जाग्या छे ने गौरवपूर्वक धार्मिक ज्ञानमां तथा धार्मिक आचरणमां रस लई रह्या छे.
आपणा धर्मनेता महावीरप्रभुए रत्नत्रयधर्मने साध्यो त्यारे तेओ त्रीस वर्षना
युवान ज हता. कुंदकुंदगुरुए पण युवान दशामां! (अरे, युवानथी पण नानी एवी
किशोर वयमां, ११ वर्षनी ज वये) रत्नत्रयनी साधना करी हती. अमे पण अमारी
युवानीने धर्मसाधनामां ज जोडशुं.... आत्महित साधशुं ने जैन–जवानो जैन –
विज्ञानवडे जैनधर्मनो ध्वज जगतमां फरकावशुं– एम युवानोनो पडकार छे. ’
’ शाबाश जैन–जवान! ”
सौ जीवमां समता मन... को साथे वेर मन नहीं
परथी भिन्न वीतरागी चैतन्यतत्त्वने जाणीने जेणे भेदविज्ञान कर्युं छे, अने
चैतन्यनी परम शांतिना वेदनरूप समभाव जने प्रगट्यो छे – एवा धर्मात्माने सर्वे
जीवो प्रत्ये समताभाव छे, कोई प्रत्ये वेरभाव नथी. चैतन्यनी शुद्धिमां ज्यां कषाय–
परिणति ज नथी त्यां वेर कोना प्रत्ये होय? परमां आ मारो मित्रने आ मारो दुश्मन
– एवी बुद्धि ज्यां नष्ट थई गई छे, ते उपरांत परम वैराग्यरूप समभाव परिणति
थई छे – त्यां सर्वत्र समभाव छे, कोई प्रत्ये वेरभाव नथी. अहो, आवी शांतदशा ते
मोक्षमार्ग छे, ते ज परम समाधि छे. कोई ज्ञान हो, कोई अज्ञानी हो – ते सौ प्रत्ये
पक्षपात रहित मने समभाव छे, मने क््यांय –वेर –विरोध नथी.
अरे, वीरनाथना वीतरागमार्गमां कोई प्रत्ये वेरभाव केवो? मोहशत्रुनो
सर्वथा नाश करवा माटे आळस छोडीने हे भाई! तुं शीघ्र तारा सम्यग्ज्ञानचक्रने
धारण कर! उत्कृष्ट समता तारी कुळदेवी छे – ते तारो स्वभाव छे, तेने याद करीने
तुं स्वाभाविक समताने धारण कर. आवी समता ते मोक्षनी सखी छे; ते समतावडे
आत्मामां अतीन्द्रियसुखनी भरती आवे छे.
अहो, आवो समताभाव भगवान महावीरना मार्गमां ज छे. अरे, धर्मनी
निंदा करे विरोध करनार प्रत्ये पण वेरभाव राखवानी जे ना पाडे छे – ते मार्गनी
वीतरागतानी शी वात! अने भेदज्ञान – धर्मीजीवो प्रत्ये पण राग करवानी जे ना
पाडे छे – ते मार्गनी वीतरागीसमतानी शी वात! !
श्री वीरनाथनो आवो मार्ग पामीने आपणे सौ फर फरीने भावना भावीए के–
सौ जीवमां समता मने, को साथ वेर मने नहि;
आशा खरेखर छोडीने, प्राप्ति करुं छुं समाधिनी.