जाग्या छे ने गौरवपूर्वक धार्मिक ज्ञानमां तथा धार्मिक आचरणमां रस लई रह्या छे.
युवान ज हता. कुंदकुंदगुरुए पण युवान दशामां! (अरे, युवानथी पण नानी एवी
किशोर वयमां, ११ वर्षनी ज वये) रत्नत्रयनी साधना करी हती. अमे पण अमारी
युवानीने धर्मसाधनामां ज जोडशुं.... आत्महित साधशुं ने जैन–जवानो जैन –
विज्ञानवडे जैनधर्मनो ध्वज जगतमां फरकावशुं– एम युवानोनो पडकार छे. ’
जीवो प्रत्ये समताभाव छे, कोई प्रत्ये वेरभाव नथी. चैतन्यनी शुद्धिमां ज्यां कषाय–
परिणति ज नथी त्यां वेर कोना प्रत्ये होय? परमां आ मारो मित्रने आ मारो दुश्मन
– एवी बुद्धि ज्यां नष्ट थई गई छे, ते उपरांत परम वैराग्यरूप समभाव परिणति
थई छे – त्यां सर्वत्र समभाव छे, कोई प्रत्ये वेरभाव नथी. अहो, आवी शांतदशा ते
मोक्षमार्ग छे, ते ज परम समाधि छे. कोई ज्ञान हो, कोई अज्ञानी हो – ते सौ प्रत्ये
पक्षपात रहित मने समभाव छे, मने क््यांय –वेर –विरोध नथी.
धारण कर! उत्कृष्ट समता तारी कुळदेवी छे – ते तारो स्वभाव छे, तेने याद करीने
तुं स्वाभाविक समताने धारण कर. आवी समता ते मोक्षनी सखी छे; ते समतावडे
आत्मामां अतीन्द्रियसुखनी भरती आवे छे.
वीतरागतानी शी वात! अने भेदज्ञान – धर्मीजीवो प्रत्ये पण राग करवानी जे ना
पाडे छे – ते मार्गनी वीतरागीसमतानी शी वात! !
आशा खरेखर छोडीने, प्राप्ति करुं छुं समाधिनी.