स्वभावनी सावधाानी : —
१०. अर्थ : — हे भगवान ! आ संसारमां सर्व जीव
वारंवार असंख्यात लोकप्रमाण प्रगट तथा अप्रगट नाना
प्रकारना १विकल्पो सहित होय छे. वळी ए जीव जेटला
प्रकारना विकल्पो सहित छे. तेटला ज विविध प्रकारना दुःखो
सहित पण छे, परंतु जेटला विकल्पो छे तेटला प्रायश्चित्तो
शास्त्रमां नथी; तेथी ते समस्त असंख्यात लोकप्रमाण विकल्पोनी
शुद्धि आपनी समीपे ज थाय छे.
भावार्थ : — यद्यपि दूषणोनी शुद्धि प्रायश्चित्त करवाथी
थाय छे, किंतु हे जिनपते ! जेटलां दूषणो छे तेटलां प्रायश्चित्तो
शास्त्रमां कह्यां नथी; तेथी समस्त दूषणोनी शुद्धि आपनी समीपे
ज थाय छे.
परथी पराङ्गमुख थइ स्वनी प्राप्ति : —
११. अर्थ : — हे देव ! सर्व प्रकारना परिग्रहरहित,
समस्त शास्त्रोनो ज्ञाता, क्रोधादि कषायरहित, शांत, एकांतवासी
भव्य जीव, बधा बाह्य पदार्थोथी मन तथा इन्द्रियोने पाछा
हठावी अने अखंड निर्मळ सम्यग्ज्ञाननी मूर्तिरूप आपमां स्थिर
थई, आपने ज देखे छे ते मनुष्य आपना सांनिध्य (समीपता)
ने प्राप्त करे छे.
भावार्थ : — ज्यां सुधी मन तथा इन्द्रियना व्यापार
१. विकल्पो=शुभ, अशुभ भावो.
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